________________
(३२२)
अद्धाद्धात्वेक देशः स्याद्रात्रेर्वा दिवसस्य वा । सा मिश्रिताययाद्धाद्धा मिश्रिता सा भवेदिह ॥१३६३॥ कश्चिद्यथाद्यपौरुष्यां कंचनत्वरयन् वदेत् । त्वरस्व जातो मध्याह्न एवमेव निशास्वपि ॥१३६४॥
अद्धाद्धा अर्थात् रात्रि अथवा दिन का एक देश-भाग। यह जिसके साथ मिश्रित हो वह अद्धाद्धा मिश्र भाषा जानना। जैसे कि प्रथम पोरसी में एक मनुष्य दूसरे आदमी से जल्दी कार्य करवाने के लिए कहे कि- अरे जल्दी कर, मध्याह्न का समय हो गया है। इसी ही तरह रात्रि के विषय में समझना। (१३६३. १३६४) .
या त्वसत्यामृषाभिख्या भाषा सापि जिनेश्वरैः । प्रज्ञप्ता द्वादश विधा विविधातिशयान्वितैः ॥१३६५॥ आमंत्रण्याज्ञापनी च याचनी पृच्छनी तथा । प्रज्ञापनी प्रत्याख्यानी भाषा चेच्छामुकूलिका ॥१३६६॥ अनभिगृहीता भाषाभिगृहीता तथा परा । . संदेह कारिणी भाषा व्याकृताव्याकृता तथा ॥१३६७॥
असत्य अमृषा अर्थात् व्यवहार भाषा भी विविध अतिशयों के स्वामी श्री जिनेश्वर भगवान् ने बारह प्रकार की कही है। वह इस प्रकार से:
१- आमंत्रणी, २- आज्ञापनी, ३- याचनी, ४- पृच्छनी, ५- प्रजापनी, ६ - प्रत्याख्यानी, ७- इच्छानुकूलिका, ८- अनभिगृहीता, ६- अभिगृहीता, १०संदेह कारिणी, ११- व्याकृता और १२ अव्याकृता। (१३६५ से १३६७)
हे देवेत्यादि तत्राद्या द्वितीया त्वमिदं कुरु । तृतीयेदं ददस्वेति तुर्या ज्ञातार्थनोदनम् ॥१३६८॥ पंचमी तु विनीतस्य विनेयस्योपदेशनम् । यथा हिंसाया निवृत्ता जन्तवः स्युश्चिरायुषः ॥१३६६॥ ..
हे देव! इत्यादि आमंत्रण अर्थ में कुछ कहना, वह प्रथम आमंत्रणी भापा है। तुम यह करो, यह दूसरी आज्ञारूप भाषा है। तुम यह दो इत्यादि याचना रूप तीसरी भाषा है। जाने हुए अर्थ की प्रेरणा रूप चौथी भाषा है। विनीत अर्थात् विनयवान शिष्य को 'हिंसा का त्यागी प्राणी दीर्घायुवान होता है' इत्यादि उपदेश देना रूप पांचवीं व्यवहार भाषा है। (१३६८-१३६६)