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(१६८) नृत्वे नृणामतीतान्यनन्तान्यष्ट च पंच च । सन्ति तद्भव मुक्तीनां तानि भावीनि नैव च ॥५६६॥
मनुष्य को मनुष्य जन्म में अतीत काल में हो गयी इन्द्रिय अनन्त होती हैं, वर्तमान काल में आठ या पांच होती हैं और तद् जन्म में मोक्षगामी मनुष्य को भावी अर्थात् भविष्य काल में नहीं होने वाली हैं । (५६६)
अन्येषां तु मनुष्यत्वे भावीनि पंच चाष्ट च । जघन्यतोऽपि स्युः मुक्तिर्यन्न मानुष्यमन्तरा ॥५६७॥ ...
अन्य जीवों को मनुष्य जन्म में जघन्यतः रूप में पांच और आठ इन्द्रिय होने वाली होती हैं, क्योंकि मनुष्य जन्म में आए बिना उनकी मुक्ति नहीं होती हैं। (५६७)
अनुत्तरामराणां च स्वत्वे सन्त्यष्ट पंच च । यदि स्युर्भूत भावीनि तावन्त्येव तदा खलु ॥५६८॥ : विजयादि विमानेषु द्विरु त्पन्नो हनन्तरे ।
भवे विमुक्तिमाप्नोति ततो युक्तं यथोदितम् ॥५६६॥
तथा अनुत्तर विमान के देवों को अपने जन्म में वर्तमान काल में आठ और पांच इन्द्रियां होती हैं और अतीत काल और भविष्य काल यदि हो तो यें भी इतनी ही होती हैं क्योंकि जिसने विजय आदि विमान में दो बार जन्म लिया हो वह प्राणी बाद के जन्म में ही मोक्षगामी होता हैं । (५६८-५६६) ,
अन्य जातित्वेत्वनन्तान्यतीतान्यथ सन्ति न । भावीनि संख्यान्येवैषां नृत्व वैमानिकत्वयोः ॥५७०॥
उस अनुत्तर विमान के देवों को अन्य जन्म में अतीत इन्द्रिय अनंत होती हैं, वर्तमान काल में सर्वथा नहीं होती और मनुष्य जन्म तथा वैमानिक देव के जन्म में भविष्य में होने वाली इन्द्रिय संख्याती होती हैं । (५७०)
तथोक्तं प्रज्ञापना वृत्तौः "इह विजयादिषु चतुर्पु गतो जीवो नियमात् ततः उधृतो न जातु चिदपि नैरयिकादिषु पंचेंद्रि तिर्यक् पर्यवसानेषु तथा व्यन्तरेषु ज्योतिष्केषु च मध्ये समागमिष्यति। मनुष्येषु सौधर्मादिषु वा गमिष्यति ॥इति॥"
प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में कहा है कि- 'विजय आदि चार अनुत्तर विमानों में रहा जीव वहां से निकलने के बाद निश्चय से किसी भी समय नारक आदि में या