________________
(१६६)
ही मुक्त होना होता है । इनको जघन्यतः छह, सात आदि इन्द्रियां होती हैं- ऐसा जानना । (५५३)
संख्येयानि च तानि स्युः संख्यात भवकारिणाम। असंख्येयान्यनन्तान्य संख्येयानन्त जन्मनाम् ॥५५४॥
संख्यात भव करने वाले को यह इन्द्रिय संख्यात होती है तथा संख्यात भव जन्म लेने वाले को असंख्यात और अनन्त जन्म लेने वाले को अनन्त इन्द्रिय होती है । (५५४)
रिष्टामघामाघवती नारकाणां च युग्मिनाम् । ...
नृणां तिरश्चां भावीनि दश तानि जघन्यतः ॥५५५॥ रिष्टा, मघा तथा माघवती नारकी के जीव, युगल जन्म लेने वाले मनुष्य और तिर्यंचों को जघन्यतः दस इन्द्रियां होने वाली होती हैं । (५५५) ...
पंचाक्षेभ्योऽन्यत्र नैषामुत्पत्ति प्यनन्तरे । ... भवे मुक्तिस्तत एषां दशोक्तानि जघन्यतः ॥५५६॥
इन सर्व जीवों को तथा पंचेन्द्रिय बिना अन्य गति में उत्पन्न होना सम्भव : नहीं होता, तथा इनको अनन्तर जन्म में मोक्ष प्राप्ति भी नहीं है। इसलिए इनकी जघन्य दस इन्द्रिय कही हैं । (५५६) . ..
वाय्वग्नि विकलाक्षाणां जघन्यतो भवंति षट् । क्ष्मादि जन्मन्तरि तैषां मुक्तिर्नानन्तरं यतः ॥५५७॥
वायुकाय, अग्निकाय और दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय; चौइन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय जीवों को जघन्य छ: इन्द्रिय होती हैं। क्योंकि इनकी पृथ्वीकाय आदि में जन्म लेने के बाद ही मोक्ष प्राप्ति कही है। आंतरा बिना इनको मुक्ति प्राप्ति नहीं होती है । (५५७)
एक द्वि त्रि चतुः पंचेन्द्रियाणां स्युरनुक्रमात् । . द्रव्येन्द्रियाणि सन्त्येकं द्वे चत्वारि षडष्ट च ॥५५८॥
एकेन्द्रिय, दो, तीन, चार और पांच इन्द्रिय में पांच प्रकार के जीवों को अनुक्रम से एक, दो, चार, छह और आठ द्रव्येन्द्रिय होती हैं । (५५८)
भविष्यन्ति न केषांचित्केषांचिदष्ट वा नव । दश षोडश केषां चित्संख्यासंख्यान्यनन्तशः ॥५५६॥
भावना प्राग्वत्॥ और कईयों को तो ये इन्द्रियां नहीं होती हैं जबकि कई को आठ, नौ, दस अथवा सोलह और बहुतों को तो संख्यात्, असंख्यात या अनन्त भी होने वाली