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(१७३) पुंसा यतो योषिदिच्छा स पुंवेदोऽभिधीयते । पुरुषेच्छा यतः स्त्रीणां स स्त्रीवेद इति स्मृतः ॥५६०॥
यतो द्वयाभिलाषः स्यात् क्लीव वेदः स उच्यते । .. तृण फुफम कद्रंग ज्वलनोपमिता इमे ॥५६१॥ . जिसके कारण पुरुष को स्त्री की इच्छा हो वह १- पुरुष वेद है, जिसके कारण स्त्री को पुरुष की इच्छा हो वह २- स्त्री वेद है और जिसके कारण से पुरुष और स्त्री-दोनों की इच्छा हो वह ३- नपुंसक वेद कहलाता है। पुरुष वेद तृण की अग्नि समान, स्त्री वेद गोबर की अग्नि समान और नपुंसक वेद नगर दाह की अग्नि समान कहलाता है । (५६०-५६१)
पुरुषादि लक्षणानि चैवं प्रज्ञापना वृत्तौ स्थानांगवृत्तौ च ॥
अर्थात् पन्नवणा सूत्र की और स्थानांग सूत्र की वृत्तियों में पुरुष, स्त्री और नपुंसक के लक्षण इस प्रकार कहे हैं -
योनि मृदुत्वमस्थैर्य मुग्धता क्लीवता स्तनौ । पुंस्कामितेति लिंगानि सप्त स्त्रीत्वे प्रचक्षते ॥५६२॥
योनि, कोमलता, अस्थिरता, मुग्धता, कायरता, स्तन और पुरुष की इच्छा - ये सात स्त्रीत्व के लक्षण हैं । (५६२) ... मेहनं खरता दाद यं शौण्डीर्यं श्मश्रु धृष्टता। . - स्त्री कामितेति लिंगानि सप्त पुंस्त्वे प्रचक्षते ॥५६३॥ • मेहन (पुरुष चिह्न), कठोरता, दृढ़ता, पराक्रम, धृष्टता, श्मश्रु और स्त्री की इच्छा- ये सात पुरुषत्व के लक्षण हैं । (५६३) . . स्तनादि श्मश्रु केशादि भावाभाव समन्वितम् । . नपुंसकं बुधाः प्राहुर्मोहानल सुदीपितम् ॥५६४॥
स्तन आदि का सद्भाव हो, श्मश्रु आदि का अभाव हो तथा मोहाग्नि का प्रदीप्त में सद्भाव हो यह नपुंसकत्व के लक्षण हैं । (५६४)
अभिलाषात्मकं देहाकारात्मक यथापरम । नेपथ्यात्मकमेकै कमिति लिंग त्रिधा विदुः ॥६५॥ .
और प्रत्येक लिंग १- अभिलाषा रूप, २- देहाकार रूप और ३- केवल वेश रूप- इस तरह तीन-तीन प्रकार के हैं । (५६५)