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(२२०)
तथाहुःपजय अख्खर पय संघाया पडिवत्ति तह च अणुओगो। पाहुड पाहुडपाहुड वत्थु पुव्वा य ससमासा ॥२०॥
वे बीस भेद इस तरह हैं - १- पर्याय, २- अक्षर, ३- पद, ४- संघात, ५प्रतिपत्ति, ६- अनुयोग, ७- प्राभृत प्राभृत,८- प्राभृत,६- वस्तु और १०- पूर्व; ये दस और इन प्रत्येक के साथ में 'समान' इतना जोड़ने से अन्य दस होते हैं । इस तरह सब मिलाकर बीस भेद होते हैं। (८२०) . . तत्र च.... अविभागः परिच्छेदो यो ज्ञानस्य प्रकल्पितः।
स पर्यायो द्वयादयस्ते स्यात्पर्याय समासकः ॥२१॥ और यहां ज्ञान का अविभाज्य परिच्छेद इसका नाम पर्याय है और ऐसे.दो या अधिक परिच्छेद (भाग) इसका नाम पर्याय समास है। (८२१). . .
लब्ध्य पर्याप्तस्य सूक्ष्म निगोदस्थ शरीरिणः । . यदाधक्षण जातस्य श्रुतं सर्व जघन्यतः ॥२२॥ तस्मादन्यत्र यो जीवान्तरे ज्ञानस्य वर्धते । अविभाग परिच्छेदः स पर्याय इति स्मृतः ॥८२३॥ युग्मं। येऽविभाग परिच्छेदा द्वयादयोऽन्येषु देहिषु । वृद्धिगतास्ते पर्याय समास इति कीर्तिताः ॥२४॥
उत्पत्ति के पहले ही क्षण में लब्धि अपर्याप्ता सूक्ष्मनिगोद के जीव को सर्व से जघन्य ज्ञान होता है, इससे अन्यत्र जीवान्तर में ज्ञान का जो अविभाज्य परिच्छेद वृद्धि प्राप्त करता है वह पर्याय कहलाता है, और अन्य जीवों में दो अथवा विशेष अविभाज्य परिच्छेदों की वृद्धि होती है इसे पर्याय समास कहते है। (८२२ से ८२४)
तथोक्तमाचारांग वृत्तौ :सर्व निकृष्टो जीवस्य दृष्ट उपयोग एव वीरेणं । सूक्ष्म निगोदा पर्याप्तानां स च भवति विज्ञेयः ॥२५॥ तस्मात्प्रभृतिज्ञान विवृद्धिर्दष्टा जिनेन जीवनाम् । लब्धि निमित्तैः करणै कायेन्द्रिय वाङ्मनोदृग्भिः ॥२६॥ श्री आचारांग सूत्र की वृत्ति में कहा है कि- श्री वीर परमात्मा ने जीव को