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विशेषश्च अत्रजावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स। ओगाहणा जहणा ओहि खित्तं जहन्नं तु ॥८६२॥
इति नन्दी सूत्रादिषु नन्दी वृत्तौ च ॥ यहां विशेष इतना है कि तीन समय के आहार वाले सूक्ष्म 'पनक' के जीव की जितनी जघन्य अवगाहना है, उतनी अवधि ज्ञान क्षेत्र से जघन्य विषय है । इस तरह नन्दी सूत्र आदि तथा नन्दी सूत्र की वृत्ति में कहा है । (८६२)...
योजन सहस्रमानो मत्स्यो मृत्वा स्वकाय देशे यः। उत्पद्यते हि पनकः सूक्ष्मत्वेनेह स ग्राह्यः ॥८६३॥
एक-हजार योजन का मत्सर (मछली) मृत्यु प्राप्त कर अपने काया देश के अन्दर सूक्ष्म पनक रूप में उत्पन्न होता है, यह यहां पनक समझना । (८६३)
संहृत्य चाद्य समये स ह्यायाम करोति च प्रतरम् । .... . संख्यातीताख्यांगुल विभाग बाहल्य मानं तु ॥८६४॥
एक समय में वह अपना विस्तार संहर (समाप्त) करके अंगुल असंख्यातवें भाग जितना प्रतर करता है । (८६४)
स्व तनू प्रथुत्व मात्रं दीर्घत्वेनापि जीव सामर्थ्यात् । तमपि द्वितीय समये संहृत्य करोत्यसौ ,सूचिम् ॥६॥
फिर दूसरे समय में जीव के सामर्थ्य से उस प्रतर को भी संहर कर अपने शरीर की चौड़ाई के समान लम्बाई की सूचि करता है। (८६५)
संख्यातीताख्यांगुल विभाग विष्कम्भमान निर्दिष्टम् । निज तनु प्रथुत्व दीर्घ तृतीय समये तु संहृत्य ।।८६६॥ उत्पद्यते च पनकः स्वदेह देशेसुसूक्ष्म परिणामः । समय त्रयेण तस्यावगाहना यावती भवति ॥८६७॥ तावंजघन्यमवधेरालम्बन वस्तु भाजनं क्षेत्रम् । इदमित्थमेव मुनिगण सुसम्प्रदायात्समव ज्ञेयम् ॥८६८॥
त्रिभि विशेषकम् ॥ तीसरे समय में अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने विष्कंभ वाला, और जितना चौड़ा उतना ही दीर्घ- इतना अपना शरीर संहर कर अपनी कायादेश में