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प्रयोग से शान्त होता है अथवा जल कभी स्वभाव से कुदरती शुद्ध होता है और कभी उपाय करने से शद्ध होता है अथवा वस्त्र में भी कोई स्वभाव से और कोई प्रयत्न से उज्जवल होता है। इस तरह भी कोई जीव स्वभाव से सम्यकत्व प्राप्त करता है और किसी को गुरु के उपदेश से होता है । (६६० से ६६४)
नेश्चयिकं सम्यकत्वं ज्ञानादिमयात्मशुद्ध परिणामः। - स्याद्वयावहारिकं तद्धेतु समुत्थं च सम्यकत्वम् ॥६६५॥
'आत्म का ज्ञानादिमय शुद्ध परिणाम वह नैश्चयिक सम्यकत्व है और इसके हेतु से उत्पन्न हुआ यह व्यावहारिक सम्यकत्व कहलाता है । (६६५)
जिन वचनं तत्त्वमिति श्रद्दधतोऽकलयतश्च परमार्थम् । तद् द्रव्यतो भवेद्भावतस्तु परमार्थ विज्ञस्य ॥६६६॥
अमुक बात श्री जिनेश्वर भगवंत ने कही है इसलिए यह सत्य है- इस प्रकार मानता है परन्तु परमार्थ नहीं जानता- ऐसे मनुष्य का सम्यकत्व द्रव्य से कहलाता है, और जो परमार्थ को जाने उसका सम्यकत्व भाव से कहते हैं। (६६६)
क्षायोपशमिकमुत पौद्गलिकतया द्रव्यतस्तदुपदिष्टम् ।
आत्म परिणाम रूपे न भावतः क्षायिकोपशमिके ते ॥६६७॥ .. क्षायोपशमिक सम्यकत्व पुद्गलिक होने से द्रव्य समकित कहलाता है
और क्षायिक तथा उपशमिक ये दोनों आत्म परिणाम रूप होने से भाव सम्यकत्व कहलाते हैं । (६६७)
कारक रोचक दीपक भेदादेतत् त्रिधाथवा त्रिविधम् । __ ख्यातं क्षायोपशमिकमुपशमजं क्षायिकं चेति ॥६६८॥
३- कारक, रोचक और दीपक- इस तरह तीन प्रकार का अथवा क्षायोप शमिक, उपशमिक और क्षायिक इन तीन भेद से समकित होता है । (६६८)
जिन प्रणीताचारस्य करणे कारकं भवेत् । रुचि मात्र करं तस्य रोचकं परिकीर्तितम् ॥६६६॥ स्वयं मिथ्या दृष्टिरपि परस्य देशनादिभिः ।
यः सम्यकत्वं दीपयति सम्यकत्वं तस्य दीपकम् ॥६७०॥ . जिनेश्वर प्रभु द्वारा उपदेश अनुसार आचरण करना, वह कारक
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