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(१६५) विनानादि निगोदिभ्योज्ञेयमेतत्तु कोविदः । स्वजातावेव तेषां तु तान्यतीतान्यनन्तशः ॥५४८॥
परन्तु इसमें अनादि निगोद जाति अपवाद रूप में गिनना क्योंकि इन जीवों की अनन्त इन्द्रिय अतीत हो गयी हैं । ये अपनी ही जाति में- सर्व जाति में नहीं हैं । (५४८)
किंच -- येषामनन्तः कालोऽभूनिर्गतानां निगोदतः । तेषामपेक्षया ज्ञेयमेतच्छु त विशारदैः ॥५४६॥
__एवमन्यत्रापि यथा सम्भवं भाव्यम् ॥ ___तथा यह भी जिन जीवों को निगोद में से निकले अनन्त काल हुआ हो उनके ही विषय में श्रुत विशारद को समझना चाहिए । (५४६)
इसी तरह अन्यत्र भी यथायोग्य समझ लेना चाहिये । एकादीनि सन्ति पंचान्तानि भावेन्द्रियाणि च । एक द्वि वि चतुः पंचेन्द्रिययाणां स्युः यथा क्रमम् ॥५५०॥
तथा भाव इन्द्रिय एकेन्द्रिय जीव को एक, दो इन्द्रिय को दो, तेइन्द्रिय को तीन, चौइन्द्रिय को चार और पंचेन्द्रिय जीव को पांच होती हैं । (५५०) . भावीनि नैव केषांचिद्वर्तन्ते मुक्तियायिनाम् ।।
केषांचित् पंच षट् सप्त संख्यासख्यान्यनन्तशः ॥५५१॥ .. कितने ही मोक्षगामी जीवों को ये इन्द्रियां भविष्य काल में नहीं होने वाली हैं जबकि कईयों को तो पांच, छह, सात संख्या, असंख्य और अनन्त भी होने वाली हैं। (५५१)
सिद्धयतां भाविनि भवे नरनारक नाकिनाम् ।
पंचाक्ष तिर्यक् पृथ्व्यबुद्रुणां जघन्यतः ॥५५२॥ . भविष्य में होने वाले संसार जन्म में जिसका मोक्ष होने वाला हो ऐसा मनुष्य, नरक का जीव, देवता, पंचेन्द्रि तिर्यंच, पृथ्वीकाय, अप्पकाय तथा वनस्पतिकाय की जघन्यतः पांच इन्द्रिय होती हैं । (५५२)
' पृथ्व्यादि जन्मान्तरित मुक्तीनां तु मनीषिभिः । .. षट् सप्त प्रभुखाण्येवं भाव्यानि प्रोक्त देहिनाम् ॥५५३॥
जो पहले गिनाये हैं उनमें से पृथ्वीकाय आदि में जन्म लेने के बाद