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अनन्ताणुद्धवान्येतानीन्द्रियाण्यखिलान्यपि । असंख्येय प्रदेशवगाढानि निखिलानि च ।। ५४२ ॥
ये सर्व इन्द्रियां अनन्त परमाणुओं की बनी हैं और वह असंख्यात प्रदेशों को अवगाही रहती है । (५४२)
स्तोकावगाहा दक् श्रोत घ्राणे संख्य गुणे क्रमात् ।
ततोऽसंख्य गुणा जिव्हा संख्यघ्नं स्पर्शनं ततः ॥ ५४३ ॥
चक्षु इन्द्रिय सर्व में कम अवगाहना वाली है और कर्ण तथा नासिका अनुक्रम से संख्यात संख्यात गुणा अवगाह वाली हैं। इससे असंख्यात् गुना अवगाहना वाली जीभ है और इससे संख्यात् गुना अवगाहना वाली स्पर्श इन्द्रिय है । (५४३)
स्तोक प्रदेशं नयनं श्रोत्रं संख्य गुणाधिकम् । ततोऽसंख्य गुणं घ्राणं जिव्हाऽसंख्य गुणा ततः ॥५४४॥ ततेऽप्यसंख्य गुणित प्रदेशं स्पर्शनेन्द्रियम् । इत्यल्प बहुतैषां स्यादवगाह प्रदेशयोः || ५ ४५ ॥
प्रदेश भी चक्षु के सबसे कम है । कर्ण इन्द्रिय के इससे संख्य गुना हैं, नासिका के इससे असंख्य गुना हैं, नासिका से जीभ के असंख्यात् गुना है और जीभ से स्पर्शेन्द्रिय के असंख्य गुना है। इस तरह सर्व इन्द्रियों के अवगाह और प्रदेश कम ज्यादा हैं । (५४४-५४५)
पांगेतु
श्रोत्राक्षि नासिकं द्वे द्वे जिव्हैका स्पर्शनं तथा ।
एव द्रव्येन्द्रियाण्यष्टौ भावेन्द्रियाणि पंच च ॥५४६ ॥
चौथे उपांग में तो इस तरह कहा है कि- दो कर्ण, दो चक्षु, दो नासिका, एक जीभ इन्द्रिय और एक स्पर्श इन्द्रिय- इस तरह कुल आठ द्रव्य इन्द्रिय हैं, भाव से यद्यपि पांच इन्द्रिय हैं । (५४६)
सर्वेषां सर्व जातित्वे द्रव्यतो भावतोऽपि च ।
अतीतानीन्द्रियाणि स्युरनन्तान्येव देहिनाम् ॥५४७॥
सर्व प्राणियों के सर्व जातियों में अनन्त द्रव्य इन्द्रिय हैं और भाव इन्द्रिय भी अतीत रूप में हुई हैं। (५४७)