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स्थान पर भंभा बजाने से सब स्थलों के लोग किस तरह सुन सकते हैं ? इसलिए इस विषय में आत्मांगुल का माप मानना ही युक्ति युक्त है । (५३४-५३५) ___ आह- प्रमाणांगुल जानेकलक्षयोजन सम्मिते ।
स्वर्विमाने कथं घंटा सर्वतः श्रूयते सुरैः ॥५३६॥
प्रमाणांगुल के मान से मापने पर अनेक लाख योजन होते हैं । इस तरह देव विमान में जो घंटानाद करने में आता है वह नाद देव सर्वत्र किस तरह सुनते हैं ? (५३६)
त्रेधैरप्यंगुलैर्नेष विषयो घटते श्रुतेः । .. द्वितीयोपांग टीकायामस्योत्तरमवेक्ष्यताम् ॥५३७॥ .
प्रमाण अंगुल, उत्सेध अंगुल और आत्मांगुल- इन तीनों प्रकार के अंगुल का मान से माप करने इस कर्ण के विषय में किसी तरह नहीं घट सकता । इसका उत्तर दूसरे उपांग की टीका में कहा है । (५३७).
वह इस प्रकार :
"तथाहि। तस्यां मेघौघट सित गम्भीर मधुर शब्दायां योजन परिमंडलायां सुस्वराभिधानायां घटायां त्रिस्ताडि तायां, सत्यां यत्सूर्याभं विमानं, तत्प्रासाद निष्कुटेषु ये आपतिताः शब्द वर्गणाः पुद्गलास्तेभ्यः समुच्छलितानि यानि घंटा प्रति श्रति शत सहस्राणि घंटा प्रति शब्द लक्षास्तैः संकुलमपि जातमभूत ॥ किमुक्तं भवति ? घंटाया महता प्रयत्नेन ताडितायां ये विनिर्गताः शब्द पुद्गलास्तत् प्रतिघाततः सर्वासु दिक्षु विदिक्षु च दिव्यानुभावतः समुच्छलितैः प्रति शब्देः सकलमपि विमानमनेक योजन लक्षमानमपि बधिरितमुपजायते इति॥ एतेन द्वादशभ्यो योजनेभ्यः समागतः शब्द श्रोत ग्राह्यो भवति न परतः । ततः कथमेकत्र ताडितायां घंटयां सर्वत्र तच्छब्द श्रुतिरूप जायते इति यदुच्यते तदपाकृतमवसेयम। सर्वत्र दिव्यानुभावस्तथा रूप प्रतिशब्दोच्छलने यथोक्त दोषा सम्भवात् ॥"
'अनेक मेघ की गर्जना समान मधुर ध्वनि करते एक योजन विस्तृत 'सुस्वर' नामक घंटे को तीन बार बजाने पर सूर्याभ नामक विमान में रहे महलों के शिखर पर पड़े शब्द वर्गण के पुद्गलों में से उछली लक्षबद्ध प्रतिध्वनि से वह विमान भर जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि घंटा बहुत जोर से बजने पर इसमें से जो शब्द पुद्गल निकले उनकी प्रतिध्वनि से सर्व दिशाओं और विदिशाओं में