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अंगुलानां पृथक्त्वं च पृथुत्वं रसनेन्द्रिये। स्व स्व देह प्रमाणं च भवति स्पर्शनेन्द्रियम् ॥४६८॥
अब पांचों इन्द्रिय में कान, नासिका और चक्षु- इन तीन की चौड़ाई एक अंगुल के असंख्यातवें भाग की कही है, जीभ की चौड़ाई पृथक्त्व अंगुल अर्थात् दो से नौ अंगुल की कही है जबकि स्पर्शेन्द्रिय अपने-अपने शरीर के समान होती है। (४६७-४६८)
त्वगिन्द्रियं विनाऽन्येषां चतुर्णा पृथुता भवेत् ।
आत्मांगुलेन सोत्सेधांगुलेन स्पर्शनस्य तु ॥४६६॥
एक स्पर्शेन्द्रिय को छोड़कर शेष चार की चौड़ाई का आत्मांगुल द्वारा मान करना और स्पर्शेन्द्रिय का उत्सेधांगुल से.करना । (४६६)
ननूत्सेधांगुले नैव मितो देहो भवेत्ततः ।। भातु ते नैव युज्यन्ते तद्गतानीन्द्रियाण्यपि ॥५००॥ आत्मांगुलेन चत्वार्योत्सेधिके नैकमिन्द्रियम् । तानीत्थं मीय मानानि कथमौचित्यमियति ॥५०१॥ (युग्मं।)
यहां शंका उठाते हैं कि- जब शरीर का मान उत्सेधांगुल द्वारा होता है तब इसी शरीर में रही इन्द्रियों का मान भी इसी तरह अंगुल के द्वारा करना चाहिए । इसके स्थान पर चार का आत्मांगुल द्वारा और एक का उत्सेधांगुल द्वारा माप करते हो, यह किस प्रकार की समझदारी है ? (५००-५०१) . अत्रोच्यते- जिव्हादीनां पृथुलत्वे औत्सेधेनोररी कृते।
त्रि गव्यूत नरादीनां न स्याद्विषय वेदिता ॥५०२॥ इस विषय में उत्तर देते हैं कि- यदि जीभादि की चौड़ाई का माप तुम्हारे कहे अनुसार उत्सेध-अंगुल से निकालें तो तीन कोश का मनुष्यों का विषय ज्ञान होता है । (५०२)
तथाहि-त्रि गव्यूतादि मनुजाः षट् गव्यूतादि कुंजराः। स्व स्व देहानुसारात्स्युः विस्तीर्ण रसनेन्द्रियाः ॥५०३॥ तेषामान्तर निर्वृत्ति रूपं चेद्रसनेन्द्रियम् । उत्सेधांगुल पृथक्त्वमितं स्यादल्पकं हि तत् ॥५०४॥ क्योंकि तीन कोश का मनुष्य और छह कोश का हाथी होते हैं । उनके