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इयमेव च शुक्लायाः स्थितिर्लध्वी क्षणाधिका । उत्कृष्टा पुनरे तस्यास्त्रयस्त्रिंशत्पयोधयः ॥३५४॥ .
इस तरह करते एक समय अधिक शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति होती है और उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम की होती है । (३५४)
इत्थं नारक देवानां लेश्या स्थितिरुदीरिता । अथ तिर्यग्मनुष्याणां लेश्या स्थितिरुदीर्यते ॥३५५॥
इस प्रकार नारकी और देव सम्बन्धी लेश्याओं की स्थिति के विषय में कहा। अब मनुष्य की और तिर्यंच की लेश्या के विषय में कहते हैं । (३५५)
या या लेश्या येषु येषु नृषु तिर्यक्ष वक्ष्यते । आन्तर्मुहूर्तिकी सा सा शुक्ल लेश्यां विना नृषु ॥३५६।।.
मनुष्य के विषय में रही शुक्ल लेश्या के सिवाय, जिस मनुष्य की अथवा तिर्यंच की लेश्या की बात कहेंगे उन सब लेश्या की स्थिति अन्तर्मुहूर्त जानना । (३५६)
शुक्ल लेश्यास्थितिनृणां जघन्यान्तर्मुहूर्तिकी । । उत्कृष्टा नव वर्षाना पूर्व कोटी प्रकीर्तिता ॥३५७॥
मनुष्य की शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की जानना और उत्कृष्ट स्थिति करोड़ पूर्व वर्ष से नौ वर्ष कम कही है । (३५७)
यद्यप्यष्ट वर्ष वयाः कश्चिद्दीक्षामवाप्नुयात् । तथापि तादृग्वयसः पर्यायं वार्षिकं विना ॥३५८॥ नोदेति केवल ज्ञानमतो युक्त मुदीरिता ।। पूर्व कोटी नवाब्दोना शुक्ल लेश्या गुरु स्थितिः ॥३५६॥ (युग्मं)
आठ वर्ष की उम्र वाला कोई मनुष्य दीक्षा ले, फिर भी दीक्षा लेने का एक वर्ष न जाता हो तब तक इतनी छोटी सी उम्र में केवल ज्ञान नहीं होता है। इसलिए शुक्ल लेश्या की स्थिति उत्कृष्ट रूप में करोड़ पूर्व से नौ वर्ष कम होने की कही है वह युक्त ही है । (३५८-३५६)
इति उत्तराध्ययन सूत्रवृत्ति प्रज्ञापना वृत्त्यभिप्रायः ॥ इस प्रकार से उत्तराध्ययन सूत्र की वृत्ति का तथा पन्नवना सूत्र की वृत्ति का अभिप्राय है।