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जिसके विषय में अब कहा जाता है उस तेजो लेश्या की स्थिति भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा प्रथम दो देवलोक सम्बन्धी ही समझना। (३४७)
पद्मायाश्च स्थितिब्रह्मावधीशानादनन्तरम् ।
लान्तकात्परतः शुक्ललेश्याया भाव्यतामिति ॥३४८॥ . पद्म लेश्या की स्थिति इशान देवलोक से लेकर ब्रह्मलोक तक की जानना और लान्तक देवलोक से अनन्तर शुक्ल लेश्या की स्थिति जानना । (३४८) अथप्रकृतम्- दशवर्ष सहस्राणि तेजोलेश्या लघु स्थितिः।
भवनेश व्यन्तराणां प्रज्ञप्ता ज्ञान भानुभि: ॥३४६॥ उत्कृष्टा भवनेशानां साधिकं सागरोपमम् ।
व्यन्तराणां समुत्कृष्टा पल्योपममुदीरिता ॥३५०॥ अब फिर प्रस्तुत विषय पर कहते हैं कि- भवनपति और व्यन्तर देवों की तेजो लेश्या की स्थिति कम से कम दस हजार वर्ष की कही है। भवनपति की स्थिति अधिक से अधिक एक सागरोपम से कुछ अधिक होती है, व्यन्तरों की उत्कृष्ट रूप एक पल्योपम की होती है । (३४६-३५०)
स्यात्पल्यस्याष्टमो भागो ज्योतिषां सा लघीयसी । . उत्कृष्टा वर्ष लक्षणाधिकं पल्योपमं भवेत् ॥३५१॥
ज्योतिषी देवों की तेजो लेश्या की स्थिति जघन्य पल्योपम के अष्टमांश (आठवें भाग) के समान होती है और उत्कृष्टतः एक पल्योपम ऊपर एक लाख वर्ष की स्थिति होती है । (३५१)
सा लघु वैमानिका नामेकं पल्योपमं मता ।। उत्कृष्टा द्वौ पयोराशी पल्यासंख्य लवाधिकौ ॥३५२॥
वैमानिक देवों की तेजो लेश्या की स्थिति जघन्य रूप में पल्योपम की कही है और उत्कृष्टतः दो सागरोपम और पल्योपम के असंख्यात भाग होता है। (३५२)
समयाभ्यधिकैषैव पद्मायाः स्याल्लघुः स्थितिः । उत्कृष्टा पुनरेतस्या स्थितिर्दश पयोधयः ॥३५३॥
पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति पूर्व कहे अनुसार से एक समय अधिक होती है और उत्कृष्ट दस सागरोपम की होती है । (३५३)
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