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की मृत्यु होती है और प्रथम अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होते मनुष्य और तिर्यंच की मृत्यु होती है।
कृष्णायाः स्थितिरुत्कृष्टा त्रयस्त्रिंशत् पयोधयः । प्राच्याग्य भव सम्बन्थ्यन्तर्मुहूर्त द्वयाधिका ॥३२७॥
कृष्ण लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम और दो अन्तर्मुहूर्त की होती है । एक अन्तर्मुहूर्त पूर्व के जन्म सम्बन्धी होती है और एक अन्तर्मुहूर्त अगले जन्म सम्बन्धी होता है । शेष तैंतीस सागरोपम नरक में होती हैं । (३२७)
पल्यासंख्येय भागाढ्या नीलायाः सा दशाब्धयः । पल्यासंख्यांश संयुक्ता कापोत्यास्तु त्रयोऽब्धयः ॥३२८॥
नील लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम और उसके ऊपर एक पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है । कापोत लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम और उसके ऊपर एक पल्योपम के असंख्यातवां भाग की होती है । (३२८)
प्राच्याग्य भवसत्कान्तर्मुहूर्त द्वयमेतयोः । पल्यासंख्यांश एवान्तर्भूतं नेत्युच्यते पृथक् ॥३२६॥
___ एवं तैजस्यामपि भाव्यम् ॥ पूर्व की दोनों नील और कापोत लेश्याओं के पूर्व और आगे जन्म सम्बन्धी दोनों अन्तर्मुहूर्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग के अन्तर्गत हो जाने से अलगअलंग नहीं कहे । (३२६)
इसी तरह से तैजस लेश्या में भी समझ लेना। . तैजसस्या द्वौ पयोराशी पल्यासंख्यलवाधिकौ । द्वयन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकाः पद्माया दशवाय ॥३३०॥ द्वयन्तर्मुहूर्ताः शुक्ला यास्त्रिंशत्पयोधयः । अन्तर्मुहूर्त सवासा जघन्यतः स्थितिर्भवेत् ॥३३१॥
तैजस लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम और पल्योपम का असंख्यातवां भाग जितनी जानना और पद्म लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम और अन्त-मुहूर्त की समझना। शुक्ल लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम और अन्तर्मुहूर्त की जानना तथा सारी छः लेश्याओं की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त समझना । (३३०-३३१)