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खंजनांजन जीमूत भ्रमद् भ्रमर सन्निभा । कोकिला कलभी कल्पा कृष्ण लेश्या स्ववर्णतः ॥२६६॥
१- कृष्ण लेश्या खंजन- एक पक्षी, अंजन, काले बादल, काला भ्रमर कोकिल और हाथी के रंग के समान काली श्याम होती है । (२६६)
पिच्छतः शुकचाषानां केकि कापोत कंठतः । नीलाब्जवनतो नीला नील लेश्या स्ववर्णतः ॥ ३००॥
२- नील लेश्या तोता, चाषपक्षी - नीलकंठ, पक्षी, मयूर पूंछ और कबूतर के गले तथा नील कमल के वन सद्दश होती है। (३००)
जैत्रा खदिरसाराणाम तसी पुष्प सोदरा । कापोत लेश्या वर्णेन वृन्ताक कुसुमौघजित् ॥३०१ ॥
३- कपोत लेश्या- खादिर वृक्ष का सार, शण के पुष्प और वृन्ताक के पुष्प के रंग के समान होती है। (३०१)
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पद्मरागनवादित्य संध्यागुंजार्धतोऽधिका ।
तेजोलेश्या स्ववर्णेन विद्रुमांकर जित्वरी ॥३०२॥
४- तेजोलेश्या पद्मरागमणि, उदय होते सूर्य, संध्या, चनोटी के आधे भाग और परवाल के रंग के समान होती है। (३०२)
सुवर्ण यूथिका स्वर्ण कर्णिका रौध चम्पकान् ।
पराभवन्ती वर्णेन पद्मलेश्या प्रकीर्तिता ॥ ३०३ ॥ और चम्पा के
५- पद्मलेश्या सुवर्ण, यूथिका पुष्प, करेण के पुष्प समान रंग होता है। (३०३)
गोक्षीर दधिडिंडौर पिंडादधिक पांडुरा ।
वर्णतः शरदभ्राणां शुक्ल लेश्याभि भाविनी ॥३०४॥
६- शुक्ल लेश्या गाय के दूध के समान, दही, समुद्र के फीन - झाग तथा
शरद ऋतु के बादल के समान वर्ण वाली होती है। (३०४)
अब इन छहों लेश्याओं का रस कैसा होता है। उसे कहते हैं
पुष्प के
किराततिक्तत्रपुषी कटुतुम्बीफलानि च । त्वचः फलानि निम्बानां कृष्ण लेश्या रसैर्जयेत् ॥ ३०५ ॥