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१- कृष्ण लेश्या को रस (स्वभाव) में नीम, कड़वा त्रपुषी, कड़वी तुम्बिका, और नीम की छाल तथा निबोली के समान होता है । (३०५)
पिप्पली शृंग वेराणि मरीचानि च राजिकाम् । हस्ति पिप्पलिका जेतुं नील लेश्या रसैः प्रभुः ॥३०६॥
२- नील लेश्या के रस में पीपल, अदरक, मिर्च, राजिका तथा गज पीपल आदि के समान होता है । (३०६)
आमानि मातुलिंगानि कपित्थ बदराणि च । फणसामलकानीष्टे रसैजेतुं तृतीयिका ॥३०७॥
३- कापोत लेश्या के रस में कच्चे बीजोरा, कपित्थ, बेर, कट हल और आंवले के समान होता है । (३०७). .
वर्ण गन्ध रसापन्न पक्वाम्रदि समुद्भवान् । रसानधिक माधुर्या तुर्याधिक्कुरुते रसैः ॥३०८॥
४- तेजो लेश्या रस में वर्ण-गंध -रसयुक्त आम फल आदि के समान मधुर और खट्टे के समान होता है । (३०८)
द्राक्षा खर्जूरमाध्वींक वारूणी नामनेकधा ।
चन्द्र प्रभादि सीधूनां जयिनी. पंचमी रसैः ॥३०६॥
५- पद्म लेश्या रस में द्राक्ष, खजूर, महुए आदि के आसव तथा चन्द्रप्रभा आदि मदिरा के समान होती है। (३०६)
शर्करा गुडमत्स्यन्डी खन्डा खन्डादि कानि च । .. माधुर्मधुर्य वस्तुनि शुक्लाविजयते रसैः ॥३१०॥
६- शुक्ल लेश्या रस में शक्कर, गुड़, खांड, मिसरी, गन्ना आदि अति मधुर वस्तुओं के समान है और सब रसों को विजय करने वाली है। (३१०)
अब इन छहों के गन्ध और स्पर्श का वर्णन करते हैं - आद्यस्तिस्त्रोऽति दुर्गन्धा अप्रशस्ता मलीमसाः । स्पर्शतः शीत रुक्षाश्च संक्लिष्टा दुर्गति प्रदाः ॥३११॥ अन्त्यास्तिस्रोऽति सौगन्ध्याः प्रशस्ता अति निर्मला। स्निग्धोष्णाः स्पर्श गुणतोऽसंक्लिष्टाः सुगति प्रदाः ॥३१२॥
प्रथम तीन लेश्या अति दुर्गन्ध से भरी हुई, अप्रशस्त एवं मलिन हैं । इनका स्पर्श शीत और ऋक्ष (कोढ़) है तथा क्लेश करने कराने वाली व दुर्गति में ले जाने