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(६६) समचतुरस्त्रं न्यग्रोध सादि वामनक कुब्ज हुंडानि । संस्थानान्यंगेस्युः प्राक्कर्म विपाकतोऽसुमताम् ॥२०५॥
पूर्व कर्म के विपाक से जीव को १- समचतुरस्र, २- न्यग्रोध,३- सादि,४वामन, ५- कुब्ज और ६- हुडंक ये छः प्रकार का शरीर संस्थान होता है । (२०५)
तत्र चाद्यं चतुरस्त्रं संस्थानं सर्वतः शुभम् । न्यग्रोधमूर्ध्वं नाभेः सत् सादि नाभेरधः शुभम् ॥२०६॥
प्रथम समचतुरस्र संस्थान सर्व प्रकार से शुभ होता है । दूसरा न्यग्रोध संस्थान नाभि से ऊपर के भाग में शुभ होता है और तीसरा सादि संस्थान नाभि से नीचे के भाग में शुभ होता है । (२०६)
इदं साचीति केऽप्याहुः साचीति शाल्मली तरुः।। ___ मूले स्याद् वृत्त पुष्टोऽसौ न च शाखासु तादृशः ॥२०७॥
इस सादि संस्थान को कई साचि कहते हैं, साचि अर्थात् शाल्मली नाम का वृक्ष है । वह मूल में गोलाकार और पुष्ट होता है, परन्तु उसकी शाखा ऐसी नहीं होती । (२०७) . तथोक्तं पंच संग्रह वृत्तौ . . अपरे तु साचीति पठन्ति तत्र साचीति प्रवचन वेदिनः शाल्मलीतरूमाचक्षते । ततः साचीव यत्संस्थानं तत्साचीति। एवं च न्यग्रोध साचिनोरन्वि तार्थता भवतीति ज्ञेयम्॥ ___पंच संग्रह की टीका में कहा है कि अन्य सादि के स्थान पर साचि कहते हैं। सिद्धान्त के ज्ञान वाले साचि का शाल्मली वृक्ष अर्थ कहते हैं इसलिए साचि वृक्ष के समान जो. संस्थान है. वह साचि संस्थान है । इस तरह साचि और न्यग्रोध इन शब्दों के अर्थ का यथायोग्यत्व कहलाता है।
मौलि ग्रीवा पाणि पादे कमनीयं च वामनम् । लक्षितं लक्षणैर्दुष्टै : शेषेष्ववयवेषु च ॥२०८॥
मस्तक गर्दन, हाथ और पैर सुन्दर-मनोहर हों और शेष अवयवों के खराब लक्षण हों, वह संस्थान वामन संस्थान कहलाता है । (२०८) .
रम्यं शेष प्रतीकेषु कुब्ज संस्थानमिष्यते । दुष्टं किन्तु शिरोग्रीवा पाणि पादे भवेदिदम् ॥२०६॥