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स्यात्केवलि समुद्घातः सप्तमः सर्ववेदिनाम् ।
अष्ट सामायिक श्चायमान्तर्मुहूर्तिकाः परे। ॥२१६॥
सात में से छः प्रकार के समुद्घात १- वेदना से, २- कषाय से, ३मरणान्तिक, ४- वैक्रिय, ५- आहारक और ६- तैजसते ये छद्मस्थ जीव को होते हैं। सातवां केवलि समुद्घात सर्वज्ञ को होता है और वह आठ समय का होता है जबकि पहले वाले छः एक अंतर्मुहूर्त के होते हैं । (२१५-२१६) तथाहि- करालितो. वेदनाभिरात्मा स्वीय प्रदेशकान् ।
विक्षिप्यानन्तर परमाणु वेष्टतान् देहतो बहिः ॥१७॥ आपूर्यासाधन्तराणि शुषिराणि च ।
विस्ताराया मतः क्षेत्रं व्याप्य देह प्रमाणकम् ॥२१८॥ तेष्टे दन्तर्मुहूर्तं च तत्र चान्तर्मुहूर्तके ।
आसातवेदनीयांशान् शातयत्येव भूरिशः ॥२१६॥
वह इस तरह- वेदना से दुःखित हुआ आत्मा, अनन्त कर्म परमाणुओं द्वारा घिरा हुआ, अपने आत्म प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालकर कंधा आदि के अन्तरों को तथा ‘मुख आदि खाली विभागों को पूरकर लम्बाई, चौड़ाई से शरीर प्रमाण क्षेत्र में फैलाकरं अन्तमुहूर्त तक रहे और उस अन्तर्मुहूर्त में यह आत्मा अशाता वेदनीय कर्म के बहुत अंशों को खत्म कर देता है । (२१७-२१६)
इति वेदना समुद्घातः॥ अर्थात् इसका नाम वेदना समुद्घात है। समाकुलः कषायेन जीवः स्वीय प्रदेशकैः । मुखादि रंध्राण्यापूर्यतान् विक्षिप्य च पूर्ववत् ॥२२०॥ विस्तारायामतः क्षेत्र व्याप्य देह प्रमाणकम् । कषाय मोहनीयाख्य कर्मांशान् शातयेद्दहून ॥२२१॥ युग्मं। शातयंश्चापरान् भूरीन् समादत्ते स्वहेतुभिः । ज्ञेयं सर्वत्र नैवं चेदस्मात् मुक्तिः प्रसज्यते ॥२२२॥ कषायस्य समुद्घातश्चतुर्भायं प्रकीर्तिनः । क्रोध मान माया लोभैहें तुभिः परमार्थतः ॥२२३॥
इति कषाय समुद्घातः॥
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इति ने