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(८७) औदारिक शरीर का उत्कृष्ट प्रमाण एक हजार भोजन से कुछ अधिक होता है। वैक्रिय शरीर का एक लाख योजन से थोड़ा अधिक है। आहारक का एक हाथ का प्रमाण है। तैजस तथा कार्मण शरीर केवली समुद्घात के समय लोकाकाश के सदृश होता है। (१२७-१२८)
अवगाढं प्रदेशेषु स्वल्पेष्वाहारकं किल ।। ततः संख्य गुणांशस्थमुत्कृष्टौदारिकं स्मृतम् ॥१२६॥
आहारक शरीर सर्व से अल्प प्रदेशों में अवगाहना करते हैं। औदारिक उत्कृष्ट संख्यात गुणा प्रदेशों में अवगाहना करते हैं। (१२६)
ततोऽपि संख्य गुणित देशस्थं गुरु वैक्रियम् । समुद्घातेऽर्हतोऽन्त्ये द्वे सर्वलोकावगाहके ॥१३०॥
इससे भी उत्कृष्ट संख्यात गुणा प्रदेशों में वैक्रिय शरीर का अवगाहन होता है, और अर्हत् प्रभु के समुद्घात के समय में तो आखिरी दोनों शरीर सर्व लोक का अवगाहन करते है। (१३०)
दीर्घ मृत्यु समुद्घातेतूत्पत्ति स्थानकावधि ।
अन्यदा तु यथा स्थानं स्व स्व देहावगाहिनी ॥१३१॥ . मरणान्त समुद्घातं गतानां देहिनां भवेत् ।
यावत्येके न्द्रियादीनां तैजसस्यावगाहना ॥१३२॥ . ब्रवीमि तां जिन प्रोक्त स्वरूपां सोपपत्तिकम् ।
भाव्यैवं कार्मणस्यापि सोभयोः साहचर्यतः ॥१३३॥ युग्मम्। ' मृत्यु के समुद्घात के समय में तो ये दोनों शरीर अन्तिम उत्पत्ति स्थान तक लम्बे होते हैं, अन्यथा यथास्थान में अपने अपने शरीर के समान होते है। तथा मरणान्त समय में समुद्घात को प्राप्त हुए एकेन्द्रियादि प्राणियों का तेजस शरीर के समान अवगाह होता है, उतना ही कार्मण शरीर का भी होता है। क्योंकि जिन वचन के अनुसार ये दोनों शरीर सहचारी होते हैं। (१३१ से १३३)
स्व स्व देहमिता व्यासस्थौल्याभ्यां सर्वदेहिनाम् । .मरणान्त समुद्घाते स्यात्तैजसावगाहना ॥१३४॥
मरणान्त समुद्घात के समय में सर्व प्राणियों की तेजस शरीर की अवगाहना . अपने अपने शरीर की मोटाई चौड़ाई के अनुसार होती है। (१३४)