Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 16] [ प्रज्ञापमासूत्र स्पर्श के रूप में परिणत, (4) लधु (हलके) स्पर्श के रूप में परिणत, (5) शीत (ठंडे) स्पर्श के रूप में परिणत, (6) उष्ण (गर्म) स्पर्श के रूप में परिणत, (7) स्निग्ध (चिकने) स्पर्श के रूप में परिणत, और (8) रूक्ष (रूखे) स्पर्श के रूप में परिणत / [5] जे संठाणपरिणता ते पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणता 1 वट्ट. संठाणपरिणता 2 तंससंठाणपरिणता 3 चउरंससंठाणपरिणता 4 प्रायतसंठाणपरिणता 5 / 25 / [8-5] जो संस्थानपरिणत होते हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं / वे इस प्रकार-(१) परिमण्डल-संस्थान के रूप में परिणत, (2) वृत्त (गोल) चूड़ी के संस्थान के रूप में परिणत, (3) त्र्यस्त्र (तिकोन) संस्थान के रूप में परिणत, (4) चतुरस्र (चोकोन) संस्थान के रूप में परिणत और (5) अायत (लम्बे) संस्थान (आकार) के रूप में परिणत / 25 / 6. [1] जे वण्णमो कालवणपरिणता ते गंधयो सुन्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसनो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासग्रो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफास. परिणता वि, संठाणग्रो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता विप्रायतसंठाणपरिणता वि 20 / [9-1] जो वर्ण से काले वर्ण के रूप में परिणत हैं, उनमें से कोई गन्ध को अपेक्षा से सुरभिगन्ध-परिणत भी होते हैं, दुरभिगन्ध-परिणत भी। रस से कोई तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कोई कटस-परिणत भी, इसी प्रकार कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं। उनमें से कोई स्पर्श से कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, कोई मृदुस्पर्श-परिणत भी एवं गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्ध स्पर्श-परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी / वे संस्थान से (प्राकार से) परिमण्डलसंस्थानपरिणत भी भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्र (त्रिकोण) संस्थान-परिणत भी, चतुरस्र (चतुष्कोण) संस्थान-परिणत भी और पायतसंस्थान-परिणत भी होते हैं / / 20 / / _ [2] जे वण्णप्रो नीलवण्णपरिणता ते गंधमो सुबिभगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि, रसो तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासो काखडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता विलयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता बि, संठाणम्रो परिमंडलसंठाणपरिणता वि बट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता विनायतसंठाणपरिणता वि 20 / [1-2] जो वर्ण से नीले वर्ष में परिणत होते हैं, उनमें से कोई गन्ध की अपेक्षा सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी; रस से तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं / (वे) स्पर्श से कर्कश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org