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( ११८ )
करना, अधीक्षण, निरीक्षण - वर्णाश्रमावेक्षणजागरूकः - रघु० १४।८५, 3. ध्यान, देखरेख, पर्यवेक्षण 4. ख्याल करना, ध्यान रखना- दे० 'अनवेक्षण' । अवेक्षणीय (सं० कृ० ) [ अव + ईश् + अनीयर्] देखने के योग्य, आदर करने के योग्य, ध्यान रखने के योग्य, विचार किये जाने के योग्य - तपस्विसामान्यमवेक्षणीया - रघु० १४।६७ ।
अवेक्षा [अव + ई + अ + टापू] 1. देखना, दृष्टि डालना 2. ध्यान, देखरेख, खयाल ।
अवेद्य ( वि० ) [ न० त०] 1. न जानने योग्य, गुप्त 2. प्राप्त करने के योग्य, द्यः बछड़ा । अबेल (वि० ) [ न० ब० ] 1. असीम, सीमारहित, निस्सीम 2. असामयिक – ल: [न० त०] जानकारी का छिपाव, -ला प्रतिकूल समय ।
अवैध (fro ) [ स्त्रियाम् धी ] [ न० त०] 1. अनिय मित, जो नियम या कानून के अनुसार न हो - अवैधं पञ्चमं कुर्वन् राज्ञो दण्डेन शुध्यति 2. जो शास्त्रविहित न हो ।
भयम् [० त०] एकता ।
अवोक्षणम् [अ + उ + ल्युट् ] झुके हुए हाथ से छिड़काव करना- उत्तानेनैव हस्तेन प्रोक्षणं परिकीर्तितम्, यञ्चतायुक्षणं प्रोक्तं तिरश्चावोक्षणं स्मृतम् ॥ अबोदः [ अव + उन्द् + ञ नि० न लोपः] छिड़काव करना, गीला करना ।
अव्यक्त ( वि० ) [ न० त०] 1. अस्पष्ट, अप्रकट, अदृश्यमान अनुच्चरित - वर्ण अस्पष्ट भाषण श० ७२१७, 2. अदृश्य, अप्रत्यक्ष, 3. अनिश्चित - अव्यक्तोयमचित्योऽयम् - भग० २ २५, ८।२०, 4. अविकसित, अरचित 5 ( बीज० में) अज्ञात, क्त: 1. विष्णु 2. शिव 3. कामदेव 4. मूल प्रकृति 5 मूर्ख - क्तम् ( वेदान्त० में) 1. ब्रह्म, 2. आध्यात्मिक अज्ञान, (सा० द० में) सर्व कारण, प्रजननात्मक नियम का मूलतत्व जिससे भौतिक संसार के सारे तत्त्व विकसित हुए हैं-- बुद्धेरिवाव्यक्तमुदाहरन्ति - रघु० १३६०, महतः परमव्यक्तमव्यक्तात्पुरुषः परः- कठ० 3. आत्मा, क्तम् ( अव्य०) अप्रत्यक्षरूप से, अस्पष्ट रूप से । सम० --अनुकरणम् अनुच्चरित तथा निरर्थक ध्वनियों की नकल करना, -आदि (वि०) जिसका आरम्भ अगाध हो, – क्रिया बीजगणित का एक हिसाब, पद (वि०) अनुच्चरित शब्द, मूलप्रभवः सांसारिक अस्तित्व रूपी वृक्ष ( सां० में), -राग (वि०) हलका लाल, गुलाबी (गः) ऊषा का रंग, अव्यक्त रागस्त्वरुणः -अमर०, राशि: (बीजगणित में ) अज्ञात अंक या परिमाण, -लक्षणः, व्यक्तः शिव. वर्त्मन, मार्ग ( वि० ) जिसके मार्ग अगाघ और अभेद्य हैं, वाचू ।
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( वि० ) अस्पष्ट रूप से बोलने वाला, साम्यम् अज्ञात परिमाणों की समीकरण राशि । अव्यग्र ( वि० ) [ न० त०] 1. अक्षुब्ध, अनाकुल, स्थिर, शान्त 2. किसी काम में न लगा हुआ ।
अव्यङ्ग (वि०) [न० त०] जो क्षतविक्षत या दोषयुक्त न हो, सुनिर्मित, ठोस, पूरा ।
अव्यञ्जन ( वि० ) [ न० ब०] 1. चिह्नरहित, लक्षणरहित,
(जैसे कि लिंगभेदक ) ना कन्या 2 अस्पष्ट, नः बिना सींग का पशु ( सींग आने की आयु होने पर भी ) । अव्यय ( वि० ) [ न० ब०] पीडा से मुक्त, थः साँप । अव्यथिषः [r or + टिषच् ] 1. सूर्य, 2. समुद्र, षी 1. पृथ्वी 2. आधीरात रात । अव्यभि ( भी ) चारः [ न० त० वियोग का अभाव - अन्योन्यस्यान्यभीचारो भवेदामरणान्तिकः मनु० ९।१०१. एकनिष्ठता, वफादारी । अव्यभिचारिन् (वि० ) [ न० त०] 1. अविरोधी, अप्रतिकूल, अनुकूल कु० ६।८६, 2. अपवादरहित, यदुच्यते पार्वति पापवृत्तये न रूपमित्यव्यभिचारि तद्वचः - कु० ५।३९ रंध्रोपनिपातिनोऽनर्था इति यदुच्यते तदव्यभिचारिवचः श०६, 3. सद्गुणी, सदाचारी, ब्रह्मचारी (सती), 4. स्थिर, स्थायी, श्रद्धालु । अव्यय ( वि० ) [ न० ब०] 1. ( क ) अपरिवर्तनशील, अविनश्वर, अखंडित - वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् - भग० २।२१, विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चिकर्तुमर्हति - १७ ( ख ) नित्य, शाश्वत - अश्वत्थं प्राहुरव्ययम् - भग० १५ १, अकीर्ति कथयिष्यति तेऽव्ययाम् - २।३४, 2. जो खर्च न किया गया हो, जो व्यर्थ नष्ट न किया गया हो 3. मितव्ययी 4. शाश्वत फल देने वाला - यः 1. विष्णु 2. शिव यम् 1. ब्रह्म, 2. ( व्या० में ) वह शब्द जिसके रूप में वचन लिंग आदि के कारण कोई विकार नहीं होता — सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु । वचनेषु च सर्वेषु यत्र व्येति तदव्ययम् । सम० आत्मन् ( वि०) अविनश्वर या नित्य (त्मा) आत्मा या ब्रह्म वर्गः अव्ययों की सूची । अव्ययीभावः [ अनव्ययमव्ययं भवत्यनेन, अव्यय +च्चि -- भू+घञ्ञ] 1. संस्कृतभाषा के चार मुख्य समासों में से एक, क्रियाविशेषण समास (अव्यय से बना हुआ अर्थात् अव्यय अथवा क्रिया विशेषण तथा संज्ञा के मेल से बना हुआ ) अधिहरि, सतृणम् आदि 2. व्यय का अभाव ( दरिद्रता के कारण ) - इन्द्रो द्विगुरपि चाहूं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः, तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः । उद्भट ० ( जो संस्कृत के समासों को आंखों के सामने रख देता है) 3. अनश्वरता । अव्यलीक ( वि० ) [ न० त०] 1. जो झूठा न हो, सच्चा
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