________________ नैषधमहाकाव्यम् / देखकर भयमीत भी इस कैसे सो गया, इसका समाधान अर्थान्तरन्यासके द्वारा करते है-) अवश्य होनेवाले होनहारमें निर्वाध ब्रह्माकी इच्छा जिस ओर दौड़ती है, मनुष्यका अस्यन्त परापीन चित मी वायु -समूहसे तृगके समान उसी दिशाको जाता है [होनहार को कोई नहीं गक सकता ] // 120 // अथावलम्ब्य क्षणमे कपादिकां तदा निदद्रावुपपल्वलं खगः / सतिय॑गाजितकन्धरः शिरः पिधाय पक्षण रतिक्लमालसः // 121 // चिकीर्षितायें देवानुकूल्यं कार्यतो दर्शयति-अथेति / अथ नलरष्टिप्राप्स्यनन्तरं रतिक्मालसास खगो हंसा तदा नलकुतूहलकाले पणमेकः पादो यस्यां क्रियायाः मित्येकपादिका एकपादेनावस्थानं मत्वर्थीयष्ठन्प्रत्ययः, 'तद्धितास्यादिना सङ्घया. पादिकामवलमय तिर्यगावर्जितकन्धरः भावर्तितग्रीवः सन् पक्षण शिरः विधाय उपपलवलं पक्वले निदगौ सुष्वाप / स्वभावोकिरलङ्कारः 'स्वभावोक्तिरलङ्कारो पथावस्तुवर्णनम्' इति लसणात् // 121 // भनन्तर रति-खेद-खिन्न वह इंस गर्दनको तिरछा कर शिरको पङ्क्षसे छिपाकर एक पैरपर स्थित होकर उस तडागके पास में ही सो गया // 121 / / सनालमात्मानननिजितप्रभ हिया नतं काञ्चनमम्बजन्म किम् / अबुद्ध तं विदुमदण्डमण्डितं स पीतमम्भःप्रभुचामरञ्च किम् ? / / 122 / / सनालमिति / स नलः तं निद्राणं हंसम् आत्माननेन निर्जितप्रभं निजसुखनि. राकृतशोमम् अत एव हिया नतं सनालं नालसहितं काश्चनं सौवर्णमम्बुजन्माबुजं किम् ? तथा विदुमदण्डेन मण्डितं भूषितं पीतवर्णमम्भाप्रभोरपाम्पत्युः वरुणस्य बुध्यतेलरित 'शषस्तथो? ध' इति तकारस्य धकारः // 122 // ____ उस (नक) ने उस ( सोये हुए हंस ) को (एक चरण पर बैठे रहने के कारण) अपने मुखसे पराबित शोभावाला (अतएव) लज्जासे नीचे मुख किया नाल (कमलदण्ड) सहित सुवर्णमय कमल समझा क्या ? तथा विद्रुम के दण्ड से शोभित पीतवर्ण वरुणका हिरण्मय चामर समझा क्या ? [लाल एक चरणसे पीतवर्ण हंसको रक्तवर्म नालवाला सुवर्णमय पीला कमल तथा रक्तवर्ण दण्डवाला सुवर्णमय वरुणका चामर समझना गेचता है अर्थात् उक्तावस्थामें सोया हुआ हंस रक्तनालवाले सुवर्णमय कमलके समान तथा विद्रुमदण्डवाले सुवर्णमय वरुणके चामरके समान प्रतीत होता था ] // 122 // कृतावराहस्य हयादुपानही ततः पदे रेजतुरस्य बिभती। तयोः प्रषालैर्वनयोस्तथाऽम्बुजैनियोधुकामे किमु बद्धवर्मणी ? // 123 // कुवेति / ततस्तनिदर्शनानन्तरं हयादवारकृतावरोहस्य कुतावतरणस्यास्य नल