________________ षष्ठः सर्गः। 321 यत स्तुता / अत्र कण्ठरेखात्रयस्य विशेषणगस्या निजपिकादित्रयविजयसूचकरवोस्प्रे. जाहेतुकरवारकाम्यलिजसकीर्णेयमुस्प्रेक्षा // 59 // जिस सभामें नलने बोलती हुई किसी ( दमयन्तीकी सखो) की, "तीन रेखावाला इसका कण्ठ कोयल, वंशी तथा वीणाको ( अपने मधुर स्वरसे ) जीत लेनेकी सूचना कर रहा है क्या ?" ऐसी मनमें प्रशंसा की। [नल दमयन्तीकी कम्बुकण्ठी किसी सखीका मधुर स्वर सुनकर मोहित हो गये / तीन रेखाओंसे युक्त कण्ठ 'कम्बुग्रीव' नामक शुभ लक्षणोंवाला होता है / ऐसा सामुद्रिक शास्त्रका वचन है ] // 59 // एतं नलं तं दमर्यान्त ! पश्य त्यजातिमित्यालिकुलप्रबोधान् / श्रत्वा स नारीकरवर्तिशारीमुखात् स्वमाशङ्कत यत्र दृष्टम / / 60 // एतमिति // स नलो यत्र सभायां, नारीकरवर्तिशारीमुखात् कान्ताकरगतशारिकामुखात् , हे दमयन्ति ! तमेतं नलं पश्य / आति पीडां त्यज / इत्येवंरूपान आलि. कुलप्रबोधाम् आलिकुलस्य सखीजनस्य, प्रबोध्यते एभिरिति प्रबोधान् आश्वासनोक्तीः, करणे घन्प्रत्ययः / श्रुत्वा स्वकीयात्मानं दृष्टमाशङ्कत / एतं नलं पश्येति निर्देशादेताभिदृष्टोऽस्मीति शङ्कितवानित्यर्थः / शारीवाक्ये नारीवाक्यभ्रमादिति भावः / अत एव भ्रान्तिमदलङ्कारो व्यज्यत इति वस्तुनालङ्कारध्वनिः // 60 // ___ जहाँपर नलने सखीके हाथपर बैठी हुई मैनाके मुखसे “हे दमयन्ती ! उस (चिराभिलषित ) इस नलको देखो (विरह-) पीडाको छोड़ दो" इस प्रकार ( दमयन्तीके प्रति कहे गये) आश्वासन वचनोंको सुनकर 'इन लोगों ने हमको देख लिया क्या ?' ऐसी आशङ्का की / [ यदि इन लोगोंने मुझे देखा नहीं होता तो ये सारिकाको ऐसा क्यों पढ़ाती ? अथवा-मैनाके वचनको ही नलने साक्षात् सखीका वचन समझकर वैसी आशङ्का की ] / यत्रैकयालीकनलीकृतालीकण्ठे मृषाभीमभवीभवन्त्या / तक्पथे दौहदिकोपनीता शालीनमाधायि मधूकमाला / / 61 // __ यत्रेति // यत्र सभायां, तददृक्पथे. नलदृष्टिपथे, मृषाभीमभवा आरोपितभैमी, अतया तया भवन्त्या एकया सख्या अलीकनलः आरोपितनलः, असः स कृता अलीकनलीकृता तस्या आल्याः सख्याः कण्ठे दौहदिकया धाच्या उपनीता या मधूकमाला, शालीनं लज्जामन्थरं यथा तथा आधायि आहिता / दधातेः कर्मणि लुङ / “आतो युक् चिण्कृतोः" इति युगागमः / एतेन भैम्याः स्वयंवरत्वरा नलेकतानत्वञ्च व्यक्तं सदस्य जीवातुरासीदित्यर्थः // 61 // जहाँपर दमयन्तीका वेष धारण की हुई एक सखीने नलका वेष धारण की हुई दूसरी सखीके गलेमें धाई ( पाठभेदसे-मालिन ) से लाई हुई महुएकी मालाको नलके सामने ही लज्जासहित डाल दिया / [ इससे स्वयंवरकी शीघ्रता तथा एकमात्र नलमें ही चित्तका होना तथा भविष्यमें द यन्ती लाभरूप शुभ शकुन सूचित होता है, अथवा-दमयन्तीको रिझाने के लिये उसकी सखियाँ भी उसकी अभिलषित क्रीडा करती थीं ] // 11 //