Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 747
________________ 678 नैषधमहाकाव्यम् / भूषणमणिषु प्रतिविम्बितेन भैमीप्रतिबिम्बेन हेतुना, जजुः भैमीङ्गितानि अज्ञासिषुः ऊहितवन्त इति यावत् / जानातेर्लिट् // 94 // नीचे शिविका (पालको ) को ढोते हुए (शिविकावाहक) यद्यपि दमयन्तीकी चेष्टाओं को प्रत्यक्ष रूपसे किसी प्रकार नहीं जानते थे ( नीचे पालकी ढोनेवालेके लिए ऊपर पालकीपर चढ़ा हुई दमयन्तीकी चेष्टाका देखना असंभव ही है ), तथापि पास में बैठे हुए सामने के राजा ( अवन्तीनाथ या अन्यान्य राजा ) के भूषों के रत्नोंमें प्रतिबिम्बसे ( दमयन्तीके भावोंको ) जान गये // 94 / / भैमीमवापयत जन्यजनस्तदन्यं गंगामिव क्षितितलं रघुवंशदीपः / गाङ्गेयपीतकुचकुम्भयुगाश्च हारचूडासमागमवशेन विभूषिताञ्च // 95 // __ भैमीमिति / जन्यननो वाहकजनः, गाङ्गेयं हेम, तद्वत् पीतं गौरवर्णम्, अन्यत्रगाङ्गेयेन भीष्मेण पीतं पुत्रत्वात् पानकर्मीभूतं, 'कशेरुहेग्नोर्गाङ्गेयं गाङ्गेयो गुहः भीष्मयोः' इति वैजयन्ती। 'पीतं स्यात् पीतगौरयोः इति, विश्वः। कुचकुम्भयुगं यस्याः तां, च तथा, हाराः मुक्ताहाराः, चुडा बाहुविभूषणाः, 'चूडा बाहुविभूषणे" इति विश्वः / अन्यत्र-हरस्येयं हारी, चुडा शिखा हारचूडा महादेवशिरोभागः, 'पुंवत् कर्मधारयजातीयदेशीयेषु' इति पुंवद्भावः, तत्समागमवशेन तदवस्थितिवशेन, विभूषिताश्च भैमी रघुवंशदीपो भगीरथः, गङ्गां भागीरथीं, क्षितितलमिव तत् ततः, अन्यं नृपम् , अवापयत निनाय, अवपूर्वकात् आप्नोतेय॑न्तालडि 'णिचश्च' इति तङ् / उपमालङ्कारः॥ 95 // शिविकावाहक, सुवर्णके समान पीत (गौर ) वर्णवाले स्तन-कुम्भद्वयवाली तथा कण्ठभूषण मुक्तामाला और बाहुभूषण चूडासे अधिक भूषित दमयन्तीको उस (अवन्तीनाथ ) से दूसरे ( राजा) के पास उस प्रकार ले गये, जिस प्रकार रघुवंशके दीपक तुल्य (भगीरथ) भीष्म ( या स्कन्द या भीष्म तथा स्कन्द ) के द्वारा (पुत्र होने के कारण ) पीया गया है स्तनकलसद्वय जिसका ऐसी तथा हर (शिव) के मस्तकके समागम ( सहवास ) से विशेषरूपसे भूमिमें स्थित ( या विशेष शोभित ) गङ्गाजीको भूतलपर ले गये थे। [ भीष्म तथा स्कन्दका गङ्गापुत्र होना और भगीरथ द्वारा गङ्गाजीको भूतल पर लाना पुराणों में वर्णित है। तां मत्स्यलाञ्छनदराश्चितचापभासा नीराजितवमभाषत भाषितेशा / बीडाजडे किमपि रूपयं चेतसा चेत् क्रीडारसं वहसि गौडविडोजसीह।। तामिति / भाषितानां वाचाम् , ईशा अधिष्ठात्री, वाग्देवता सरस्वती, मत्स्य लान्छनस्य कामस्य, दराश्चितस्य ईषदाकुञ्चितस्य, चाषस्य भासा कान्त्या, नीराजिते निर्मनिछते, तदपेक्षयोत्कृष्ट इति भावः, भ्रवौ यस्याः तादृशी, तां भैमीम् , अभाषत; 1. 'दरान्छित' इति पा०। 2. 'सूचय' इति पा० /

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