________________ नवमः सर्गः। सात्त्विकाः परिकीर्तिताः // " इत्युकसकलसाविकोपलपणमिति द्रष्टव्यम् / तदस्य कदम्बाभेदोक्तेरतिशयोक्तिभेदः // 39 // (पहले ) 'पुष्प है। इतना ही दमयन्तीके शरीरका वर्णन हुआ, वह पुष्प कौन-सा (किस नामका ) है ?, इस प्रकार विशेष रूपसे वह ( दमयन्तीके शरीरका वर्णन ) नहीं हुआ / तब ( नलका निश्चय हो जानेपर हर्षाश्रुसे वर्षा ऋतुके होनेपर हर्षित रोमाञ्चों से अर्थात् दमयन्तीके हर्षाश्रु गिरने के बाद रोमाञ्च युक्त होनेपर) वह पुष्प 'कदम्ब' हैं, यह वर्णन हुआ। [ वर्षाकालमें कदम्ब पुष्पको विकसित होनेसे हर्षाश्रुके बाद रोमाञ्चित दमयन्तीशरीरको कदम्ब पुष्प माना गया है ] // 139 // मयव सबोध्य नलं व्यलापि यत्स्वमाह मद्बुमिदं विमृश्य तत् / असाविति 'भ्रान्तिमसाइमस्वसुः स्वभाषितस्वोभ्रमविभ्रमक्रमः // 140 / मयेति / मया नलमेव सम्बोध्य व्यलापीति यत् तदिदं मद्विलपितं विमृश्या. लोच्यासो नलः मबुद्धं स्वसम्बोधनलिङ्गेन मया ज्ञातमेव स्वमात्मानमाह / 'स्वो ज्ञातावात्मनि स्वम्' इत्यमरः / अनया ज्ञातस्य मे किं गोपनेनेति मत्वा नलोऽहमिति कथितवानित्यर्थः / आहेति भूते जलन्तभ्रमादिति वामनः / अत्र तु वर्तमान सामीप्यादा गतिरिति / दमस्वसुः या भ्रान्तिस्तां भ्रान्तिमसो नलः स्वेन भाषितः कथितः स्वोभ्रमविभ्रमाणां स्वोन्मादविलसितानां क्रमः 'अये प्रिये' इत्यादिश्लोकोक्तप्रकारो येन स सन् असात् असासीत् अच्छेत्सीदित्यर्थः। स्यतेलङि "विभाषा घ्राधेटशाच्छासः" इति वा सिचो लुक / उन्मादादात्मप्रकाशनमिति नलवाक्यादे. वावगमात्तु स्वेन ज्ञात्वा दूतभ्रान्तिनिवृत्तेत्यर्थः // 140 // मैंने अर्थात् दमयन्तीने ही नलको सम्बोधितकर (इलो० 97-100 ) जो विलाप किया और इस नलने उस (विलाप ) को मुझसे जाने गये अपनेको ( दमयन्तीने मुझे पहचान लिया तभी मुझे नाम लेकर सम्बोधित कर रही है, ऐसा मानकर अपनेको ) जो प्रकाशित किया (इलो० 103-120), ऐसे दमयन्तीके भ्रमको, स्वयं (नल द्वारा ही) बतलाये गये ( श्लो० 122-126 ) हैं अपने उन्मादविलास ( अथवा-उन्माद तथा बिलास ) जिसके द्वारा ऐसे नलने दूर ( पाठा०-कम ) कर दिया [ 'मुझसे पहचाने गये अपने (नल ) को जानकर ही नलने मेरे सामने अपनेको प्रकट किया, ऐसे भ्रमको दमयन्तीने छोड़ दिया ] // 140 / / विदर्भराजप्रभवा ततः परं त्रपासखी वक्तुमलं न सा नलम् / पुरस्तमूचेऽभिमुखं यदत्रपा ममज्ज तेनैव महाहदे ह्रियः / / 141 / / विदर्भेति / सा विदर्भराजप्रभवा वैदर्भी ततः परं नलोऽयमिति ज्ञानानन्तरं पायाः सखी लज्जिता सती नलं वक्तुं साक्षात् सम्भाषितुं नालं न शशाक / कुतः, 2. "-मशा-" इति पाठान्तरम् /