Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

View full book text
Previous | Next

Page 687
________________ नैषधमहाकाव्यम् / सर्वैरपि तथा कीर्यते इत्यर्थः। एतद्धस्तस्य श्रीगृहत्वात् पद्मत्वं करत्वप्रसिद्धबिसात्म कत्वेन ग्रहणं सिद्धमित्युत्प्रेक्षा युक्ता // 123 // इस ( दमयन्तीके ) बाहुओंने पराजित मृणाल (कमलनाल) से उसके पुष्प अर्थात् कमलको अलग कर ( दण्डरूपमें राजग्राह्य भाग, पक्षा०-हाथ ) लिया है क्या ? ( क्योंकि-) इन बाहुओं में शोभाका स्थान ( पक्षा?-लक्ष्मीका निवास स्थान ) वह ( कमलपुष्प ) नहीं देखते हैं ? और हाथ ( पक्षा०-दण्डरूपमें ग्राह्य राजग्राह्य भाग) नहीं कहते ? अर्थात् सभी लोग वैसा देखते तथा कहते हैं / [विजयी का पराजितसे कर लेना राजनीतिके अनुकूल एवं लोकप्रसिद्ध है। दमयन्तीके बाहुओंने कमलनालको पराजित कर उसके पुष्प (कमल ) को कररूपमें ग्रहण किया, इसी कारण दमयन्तीके बाहुओं को लोग लक्ष्मीका घर ( पक्षा०-शोभाका स्थान ) कमल के समान देखते तथा उन्हें 'कर' लेनेसे 'कर' अर्थात् बाहु ( हाथ ) कहते हैं / दमयन्तीके बाहु श्रीगृह ( लक्ष्मीका घर, पक्षा०-शोभाका स्थान ) है, कमलका श्रीगृह होना लोकप्रसिद्ध है, तथा पराजित कमलनालसे 'कर' ( राजग्राह्य भाग) लेनेसे उन दमयन्ती के बाहुओंको 'कर' (बाहु = हाथ ) कहा जाना भी उचित ही है | छमेव तच्छम्बरजं बिसिन्यास्तत्पद्ममस्यास्तु भुजाग्रसन। उत्कण्टकादुद्गमनेन नालादुत्कण्टकं शातशिखैन के र्यत् / / 124 // छद्मवेति / बिसिन्याः कमलिन्याः सम्बन्धि, तत् पद्मं, शम्बरजं शम्बरात् जलात् जातं, छद्मवालीकमेव, अथ च शम्बरदनुजजातं, छद्मव मायैव, न तु पारमार्थिकमिः त्यर्थः, 'दैत्ये ना शम्बरोऽम्बुनि' इति वैजयन्ती, तु किन्तु, अस्याः भैम्याः, भुजाग्रं सद्म स्थानं यस्य तादृशं, तत् पद्मं पारमार्थिकं पद्ममित्यर्थः; कुतः ? यत् यस्मात् , उत्कण्टकात् उद्गताः कण्टकाः सूचयः पुलकाश्च यस्य तस्मात् , नालात् पद्मदण्डात् भुजदण्डाच्च, उद्गमनेन प्रादुर्भावेण हेतुना, शातशिखैः तीक्ष्णाः , नखैः उत्कण्टकम्, एतत्पाणिपद्ममिति शेषः, बिसपद्मन्तु उत्कण्टकनालादुद्भतमपि नोत्कण्टकं पभे कण्टकविरहात्, किन्तु भैमीपाणिपद्ममेव प्रकृतपनं सकण्टकत्वात्, यतः कारणगुणाः कार्यगुणमारभन्ते इति शास्त्रात् सकण्टकनालकार्यस्य सकण्टकत्वेन भवितव्यमिति भावः / भैमीपाणिपद्मस्य प्रसिद्धपद्मव्यतिरेकोक्त्या व्यतिरेकालङ्कारः // 124 // __पद्मिनीके कमल शम्बर जात ( पानी में उत्पन्न, पक्षा-शम्बर नामक मायावी दैत्यकी की हुई ) माया ही है और इस दमयन्तीके भुजाग्रमें स्थित कमल वास्तविक कमल हैं; क्योंकि कण्टक युक्त कमलनाल ( पक्षा-रोमाञ्चयुक्त भुजासे निकलने के कारणसे तीक्ष्णाग्र नखों ( तेज अग्र भागवाले नखों के न होनेसे ) भुजाग्रस्थित कमल उत्कण्टक ( कांटोंसे युक्त, , पक्षा०-रोमाञ्चसे युक्त ) और कमल पुष्प कण्टकयुक्त नहीं है, किन्तु कण्टकर हित है। [ कारणानुसार कार्योत्पत्ति होनेसे कारणभूत कण्टकयुक्त कमलनालसे कण्टकयुक्त कमलपुष्प उत्पन्न होना उचित था, किन्तु वैसा नहीं होनेसे वह अवास्तविक कमल है और कण्टकयुक्त अर्थात् रोमाञ्चयुक्त दमयन्ती भुजासे उत्पन्न दमयन्ती भुजाग्रगृह वासी कमल तीक्ष्णाग्र नखों के

Loading...

Page Navigation
1 ... 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770