________________ एकादशः सर्गः। हे तरुणि (दमयन्ति)! इस ( जम्बूद्वीप ) का वृक्ष राजनम्बू शोमता है, बड़े-बड़े चट्टानोंके समान जिसके फलोको देखकर सिद्धस्त्रियां 'ये हाथियों के झुण्ड किस मार्गसे पेड़पर चढ़ गये' ऐसा प्रिय वचन कहती हैं। [इस जम्बूदीपके राजजम्बूवृक्षके फल हाथियों के बराबर बड़े-बड़े हैं ] // 85 / / . जांबूनदंजगति विश्रुतिमेति मृत्स्ना कृत्स्नाऽपि सातव रुचा विजितश्रि यस्या तजाम्बवद्रवभवाऽस्य सुधाविधाम्बुर्जम्बूः सरिद्वहति सीमनि कम्बुकण्ठि! जाग्बूनदमिति / कम्बोः शङ्खस्य, कण्ठ इव कण्ठः रेखात्रयविशिष्टग्रीवा यस्यास्तस्याः सम्बुद्धिः, हे कम्बुकण्ठि ! हे रेखात्रयाश्चितग्रीवे ! 'रेखात्रयाश्चितग्रीवा कम्बुग्रीवेति कथ्यते' इति हलायुधः / 'अङ्गगात्रकण्ठ-' इत्यादिना ङीष। तेषां पूर्वोक्तानां, जाम्बवानां जम्बूफलानां, 'जम्बूः स्त्री जम्बु जाम्बवम्' इत्यमरः / 'जम्वा वा' इति फलरूपार्थे अण-प्रत्ययः, 'लुप्च' इति विकल्पादणो न लुप। द्रवात् रसात् भवा उत्पन्ना, सुधायाः विधेव विधा प्रकारो येषां तानि सुधाविधानि सुधाप्रका. राणि, अम्बूनि यस्याः सा अमृतसहशजला, जम्बूः जम्ब्वाख्या, सरित् अस्य जम्बू. द्वीपस्य, सीमनि सीमायां, वहति प्रवहति; यस्याः जम्बूनद्याः, सम्बन्धिनी कृत्स्ना समस्ताऽपि, सा प्रसिद्धा, मृत्स्ना प्रशस्तमृत्तिका, 'मृन्मत्तिका प्रशस्ता तु मृत्सा मृत्स्ना च मृत्तिका' इत्यमरः। 'सस्नो प्रशंसायाम्' इति मृच्छब्दास्नप्रत्ययः / तव रुचा शरीरकान्त्या, विजितथि निर्जितशोभ, नपुंसके हृस्वः। जम्बूनद्यां भूवं जाम्बूनदं सुवर्णम् , इति जगति विश्रुतिं विख्यातिम् , एति / तथा च विष्णुपुराणं,-- 'तीरभूस्तत्र सम्प्राप्य शुद्धवातविशोधिता। जाम्बूनदाख्यं भवति सुवर्ण देव. भूषणम् / ' इति // 86 // हे कम्बुकण्ठि (शङ्खके कण्ठ के समान तीन रेखाओंसे युक्त अतएव शुभ लक्षणयुक्त कण्ठवाली दमयन्ति )! उस 'जम्बूदीप'के ( अथवा-उन ) जामुनके फलों के रसके बहनेसे उत्पन्न हुई तथा अमृततुल्य मधुर जलवाली 'जम्बूनदी' इस जम्बद्वीपको सीमामें बहती है, जिस 'जम्बूनदी' की समस्त प्रशस्त ( उपजाऊ ) मिट्टो संसार में तुम्हारी कान्तिसे जोते गये 'जाम्ब नद' (सुवर्ण-सोना ) इस प्रसिद्धिको प्राप्त करती है। [जिस 'जम्बनदो' की मिट्टी भी सुवर्ण है, वह भी तुम्हारी कान्तिसे जीता गया है। 'जम्बनदी' की मिट्टीको जाम्बनद अर्थात् सुवर्ण ( सोना ) कह कर उसको महत्त्व दिया गया है तथा उस ( जाम्बनद अर्थात् सुवर्ण ) को जीतनेवाली दमयन्ती शरीरकी कान्तिको बतलाकर उस जाम्बूनदसे भी अधिक महत्त्व दमयन्ती-शरीर कान्तिको दिया गया है। दमयन्तीकी शरीर-कान्ति सुवर्णसे भी अधिक गौरवर्ण हैं ] // 86 // तस्मिन् जयन्ति जगतीपनयः सहस्रमस्राश्रुसान्द्ररिपुतद्वनितेषु तेषु / रम्भोरु चारु कतिचित्तव चित्तबन्धिरूपानिरुपय मुवाऽहमुदाहरामि /