Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 700
________________ 631 एकादशः सर्गः। रहे हैं। अन्य भी कोई चतुर नर्तकी मृदङ्ग आदि बाजाओं के स्वरोंको ज्यों के त्यों अनुवाद करती अर्थात् गाती हुई हाथ आदि अङ्गों को हिलाकर अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन बनताके समक्ष करती है / तथा दूसरा कोई बुद्धिमान् शिष्य भी गुरुके वचनों का सम्पूर्णतया अनुवाद (दुहरा) कर हाथ आदिके द्वारा सङ्केत करता हुआ अपनी तीव्र बुद्धिका परिचय लोगोंको देता है ] // 6 // सम्भाषणं भगवती सदृशं विधाय वाग्देवता विनयबन्धुरकन्धरायाः। ऊचे चतुर्दशजगजनतानमस्या तत्राश्रिता सदसि दक्षिणपक्षमस्याः॥७॥ सम्भाषणमिति / चतुर्दशानां जगतां समाहारश्चतुर्दशजगत्, तत्र जनतायाः जनसमूहानां, नमस्या नमस्कार्या, 'नमोवरिव-' इति क्यचि धातुसंज्ञायामचो यत्, 'क्यस्य विभाषा' इति क्यचो लोपः भगवती वाग्देवता सरस्वती, तत्र सदसि, विन. येन बन्धुरकन्धरायाः नम्रग्रीवायाः, 'बन्धुरी नम्रविषमौ' इति वैजयन्ती, अस्याः भैम्याः, दक्षिणपतं दक्षिणपार्श्वम् , अथ च अनूकूलपक्षम् , आश्रिता आस्थिता, पूज्यत्वाइक्षिणपार्श्वस्थिता सतीत्यर्थः, सडशं तत्कालोचितं, सम्भाषणं विधाय 'आग. च्छ वस्से ! पश्य' इत्यादि वाक्यमुक्त्वा, ऊचे वच्यमाणमुवाच / दक्षिणपक्षमित्य. नेन दमयन्तीपक्षपातित्वं सूचितम् // 7 // उस स्वयंवर में भगवती (षड्गुण' ऐश्वर्यादिवाली) तथा चौदह भुवनों की जनताके द्वारा पूजा ( या नमस्कार ) के योग्य सरस्वती विनयसे नम्र कन्धरावाली इस ( दमयन्ती) के दक्षिण पक्षका आश्रयकर अर्थात् पूज्य होनेसे दहने पार्वमें खड़ी होकर ( अथवाअनुकूल पक्षको लेकर ) उचित ( उस समयके योग्य ) भाषा कर के बोली-॥ 7 // अभ्यागमन्मखभुजामिह कोटिरेषा येषां पृथक्कथनमब्दशतातिपाति / अस्यां वृणीष्व मनसा परिभाव्य कश्चिदयं चित्तवृत्तिरनुधावति तावकीना। अभ्येति / हे वस्से ! इह स्वयंवरे, मखभुजां देवानाम् , एषा कोरिः अनन्तस. वया, अभ्यागमत् अभ्यागता, येषां मखभुजां, पृथक् प्रत्येकमेव, कथनं वर्णनम्, अब्दानां वत्सराणां, शतानि अतिपतति अतिक्रामतीति तथोक्तं, तावता कालेनापि कत्त' न शक्यते इत्यर्थः, अस्यां सुरकोट्यां, यं कश्चित् सुरं, तवेयं तावकीना स्वदीया, 'युष्मदस्मदोरन्यतरस्यो खञ्च' इति खम् / 'तवकममकावेकवचने' इति तवकादेशः, चित्तवृत्तिः अनुधावति अनुयाति, मनसा परिभाव्य आलोच्य, तं वृणीष्व स्वीकुरु इत्यर्थः // 8 // यहां ( स्वयंवरमें ) ये करोड़ों देव आये हुए हैं, जिनका अलग-अलग वर्णन करनेमें 1. 'ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। वैराग्यस्याथ मोक्षस्य षण्णां भग इति स्मृतः // 1 // इति कथिताः षड भगा यस्याः सा 'भगवती'। 400

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