________________ 588 नैषधमहाकाव्यम् / इन युवकोंका शिरपर रत्नान्तरका धारण करना व्यर्थ है। ये सभी युवक रत्नके समान सुन्दर हैं ] // 63 // प्रवेक्ष्यतः सुन्दरवृन्दमुच्चैरिदं मुदा चेदितरेतरं तत् / न शक्ष्यतो लक्षयितुं विमिथं दसौ सहस्त्रैरपि वत्सराणाम् // 64 // प्रवेच्यत इति / दसौ अश्विनौ, उच्चैः महत् , इदं सुन्दरवृन्दं रमणीयवर्ग, मुदा कौतुकेन, प्रवेक्ष्यतः अन्तःप्रविष्टौ भविष्यतः, चेत् तत्तहि, विमिश्रं मिलितम् , इतरेतरम् अन्योऽन्यं स्वभ्रातृरूपं, वत्सराणां सहस्रैरपि लक्षयितुं मदीयः अयमेव भ्राता इति विविक्ततया ग्रहीतुं, न शक्यतः शक्तौ न भविष्यतः तत्र सभायां स्थिताः सर्वे राजानः अश्विनीकुमारतुल्या इति भावः / अत्र दत्रयोः सौन्दर्यगुणसामान्येन सुन्दरवृन्दकतादात्म्यात् सामान्यालङ्कारः, सामान्यं गुणसाम्येन यत्र वस्त्वन्तरकता' इति लक्षणात् // 64 // ___ यदि अश्विनीकुमार अत्यन्त हर्ष से इस सुन्दर-समूहमें प्रवेश करेंगे तो मिश्रित ( ८काकृति होनेसे इनमें मिले हुए ) पर स्परको हजारों वर्षों में पहचानने के लिये वे समर्थ नहीं होंगे। ( लोकमें भी अत्यन्त समान वस्तुमें मिली हुई कोई चीज नहीं पहचानी जा सकता, ये सभी युवक अश्विनीकुमार के समान सुन्दर हैं ] / / 64 // स्थितैरियद्भिर्युवभिविंदग्धैर्दग्धेऽपि कामे जगतः क्षतिः का ? / एकाम्बुबिन्दुव्ययमम्बुराशेः पूर्णस्य कः शंसति शोषदोष ? // 65 / / स्थितैरिति / विदग्धैः प्रगल्भैः अदग्धेश्व, स्थितैः इयद्भिः, एतावद्भिः, युवभिः, उपलक्षितस्येति शेषः, जगतः कामे दग्धेऽपि का क्षतिः ? न्यूनता न काऽपीत्यर्थः / तथा हि, पूर्णस्य अम्बुराशेः एकाम्बुबिन्दुव्ययं कः शोष एव दोषस्तं शंसति ? न कोऽपि दोषत्वेन शंसतीत्यर्थः; यथा समुद्रस्य एकबिन्दुजलव्यय समुद्रः शुष्कः इति न कोऽपि कथयति, तथा कामसदृशानां बहूनाम् एतेषां विद्यमानतायाम् एकस्य कामस्य नाशे पृथिव्याः का क्षतिः? इति भावः। दृष्टान्तालङ्कारः / / 65 // विदग्ध ( चतुर, पक्षा-नहीं जले हुए ) इतने युवकोंके रहनेस ( एक ) कामदेवके जलने पर, भी संसारकी क्या हानि हुई ? अर्थात् कोई नहीं / भरे हुए समुद्र के जलके एक बूंदके व्ययको कौन सूखना कहता है ? अर्थात् कोई नहीं। [ समुदमें अपार जल रहनेसे जिस प्रकार उसके एक बिन्दुके नष्ट होने पर भी कोई व्यक्ति समुद्रको सूखा हुआ नहीं कहता, न उससे कोई हानि होती है, उसी प्रकार कामदेव तुल्य इतने ( बहुत अधिक अर्थात् अगणित ) युवकों के रहते ( या युवकोंसे परिपूर्ण संसारका ) एक कामदेवके जल जानेपर भी कोई हानि नहीं समझनी चाहिये ये सभी युवक कामदेव के समान सुन्दर हैं ] 1. इति स्तुवन् हूकृतिवर्गणाभिर्गन्धर्ववर्गेण स गायतैव। . ओङ्कारभूम्ना पठतैव वेदान् महर्षिवृन्देन तथाऽन्वमानि // 66 / /