________________ 556 नैषधमहाकाव्यम् / कोई भी सत्कुलोत्पन्न कुमार कामबाणके लक्ष्यसे हीन नहीं रहा और ( स्वयंवर में ) नहीं आनेवाला नहीं रहा अर्थात् सभी कुलीन कुमार दमयन्तीके स्वयंवर का समाचार सुनकर कामबाणसे पीड़ित हो स्वयंवरमें आये / राज-समूहके एक साथ चलते ( स्वयंवर में आते ) रहनेपर भूमिका थोड़ा-सा भाग भी मार्गहीन नहीं रहा अर्थात् पृथ्वीका सब भाग राजाओं के स्वयंवर में आनेसे मार्ग बन गया। (दमयन्तीके स्वयंवरका समाचार सुनकर कामबाणपीड़ित सभी राजकुमार पृथ्वीके सब भागोंसे स्वयंवर में पहुँचे ] // 2 // योग्यैर्बजद्भिर्नृपजां वरीतुं वीरैरनः प्रसभेन हर्तुम्। द्रष्टुं परैस्ताननुरोधुमन्यैः स्वमात्रशेषाः ककुभो बभूवुः // 3 // योग्यैरिति / योग्य रूपयौवनादिना सम्बन्धाः नृपजां भैमी वरीतुम् / 'वृतो वा' इति दीर्घः। अनहैं: रूपयौवनादिशून्यैः, वीरैः प्रसभेन बलेन हर्तुं परैः कैश्चिनिःस्पृहैः केवलं द्रष्टुमेव स्वयंवरमिति शेषः, अन्यैस्तु तान् राजन्यादीननुरोदु. मुपासितुं व्रजद्भिः करणैस्तद्राजन्यरित्यर्थः। ककुभो दिशः स्वमात्रशेषाः स्वरूपमात्रावशिष्टा बभूवुः / अत्रापि ककुभां स्वमात्रशेषत्वासम्बन्धेऽपि सम्बन्धोक्तरति. शयोक्तिभेदः // 3 // (श्रेष्ठवंश आदिसे ) योग्य कुछ राजकुमार दमयन्तीको वरण करनेके लिये, (श्रेष्ठवंश आदिसे ) अयोग्य (किन्तु ) शूरवीर कुछ राजकुमार दमयन्तीको बलात्कारसे हरण करने के लिये, ( उक्त दोनों गुणोंसे हीन ) कुछ लोग दमयन्ती या स्वयंवरको देखनेके लिये और कुछ लोग आये हुए उन लोगोंकी सेवा करनेके लिये; इस प्रकारके आते हुए उन लोगोंसे सब दिशाएं खाली हो गयीं / [ स्वयंवरमें आनेवाले लोगोंमें कुछ राजकुमार ऐसे थे जो अपने श्रेष्ठवंश तथा गुणोंसे दययन्तीको न्यायपूर्वक वरणकर ले जाना चाहते थे, उक्त गुणोंसे हीन होनेसे अयोग्य कुछ शूरवीर राजकुमार दमयन्तीको बलात्कारसे हरणकर ले जाना चाहते थे जो न तो श्रेष्ठवंश आदिवाले थे और न शूर वीर ही थे ऐसे कुछ लोग दमयन्तीको या स्वयंवरको देखने मात्र के लिये आ रहे थे और कुछ लोग वहां आये हुए उन सबोंकी सेवाके लिए आ रहे थे; इस प्रकार झुण्ड के झुण्ड आते हुए लोगोंसे सब दिशाएँ खाली हो गयीं। दमयन्तीके स्वयंवर में किसी न किसी निमित्तसे सब दिशाओंसे बहुत लोग आये ] // 3 // लोकैरशेषैरवनिश्रियन्तामुद्दिश्य दिश्यैर्विहिते प्रयाणे / स्ववर्तितत्तज्जनयन्त्रणातिविश्रान्तिमापुः ककुभा विभागाः॥४॥ लोकैरिति / अवनिश्रियं भूलोकलचमी तां भैमीमुहिश्याभिसन्धाय दिश्यैदिक्षु भवा, 'दिगादिभ्यो यत्'। अशेषैलॊकैर्जनः प्रयाणे विहिते सति ककुभां विभागाः 1. 'परिकर्तुमन्यैः' इतिपाठान्तरम् / अनुरोधुमित्यत्र उपरोधुमिति च पाठान्तरम्।