________________ नैषधमहाकाव्यम् / पार्वतीने ईशान (शिवजी) की यात्रामें विघ्न कर दिया। [ ईशान कोणके स्वामी शिवजी का आधा शरीर पार्वतीका और आधा अपना है, पत्नी भागवाले आधे शरीरको छोड़कर जाना असम्भव या निष्क्रिय होनेसे दमयन्तीके विवाहकी इच्छा रहनेपर भी शिवजी विदर्भ देशको नहीं जा सके // सपत्नी लानेको असहन करना स्त्रियोंका स्वभाव होता है, अतः पार्वतीका भी वैसा करना उचित ही है ] // 14 // स्वयंवरं भीमनरेन्द्रजाया दिशः पतिर्न प्रविवेश शेषः। प्रयातु भारं स निवेश्य कस्मिन्नहिर्महीगौरवसासहिः कः // 15 // स्वयंवरमिति / दिशः पतिर्दिक्पालः शेषः शेषाहिः भीमनरेन्द्रजाया भैम्याः स्वयंवरं न प्रविवेश / कुतः स शेषो भारं भूभारं कस्मिन्निवेश्य निधाय प्रयातु न कस्मिन्नपीत्यर्थः। तथा हि महीगौरवं महीभारं सासहिभृशं सोढा / 'सहिवहिचलिपतिभ्यो यङन्तेभ्यः किकिनौ वक्तव्यौ' इति किकिनौ तयोलिड्वद्भावात् 'न लोक' इत्यादिना षष्ठीप्रतिषेधात् कर्मणि द्वितीया। अन्योऽहिः सर्पः कोऽस्ति न कोऽपीत्यर्थः // 15 // दिशा (नीचेकी दिशा अर्थात् पाताल ) के स्वामी शेषनाग भीमराजकुमारी ( दमयन्ती ) के स्वयंवर में नहीं प्रवेश किये अर्थात् नहीं आये; (क्योंकि ) वह (पृथ्वीके) भारको किसपर रखकर आते, पृथ्वी के भारको अच्छी तरह सहन करनेवाला कौन (दूसरा) सर्प है ? अर्थात् कोई नहीं / [ लोकमें भी अपने कार्यभारको अपने सदृश व्यक्तिपर सौंपकर ही कोई बाहर जाता है, अन्यथा नहीं; अतः अधोदिक्पाल शेषनाग भी पृथ्वी के भारको उठाने में समर्थ किसी सर्पके नहीं मिलनेसे दमयन्तीके साथ विवाहकी इच्छा होनेपर भी उसके स्वयंवर में नहीं जा सके ] // 15 // ययौ विमृश्योर्ध्वदिशः पतिर्न स्वयंवरं वीक्षितधर्मशास्त्रः। ब्यलोकि लोके श्रुतिषु स्मृतौ वा समविवाहः क्व पितामहेन // 16|| ययाविति / वीतितं सम्यक् परिशीलितं धर्मशास्त्रं येन स ऊर्ध्वदिशः पतिर्ब्रह्मा विमृश्यायुक्तमिति निश्चित्येव स्वयंवरं न ययौ। तथा हि पितामहेन ब्रह्मणा पितुः पित्रा च समं विवाहः / 'पितामहो विरिञ्चिः स्यात्तातस्तु जनकोऽपि च' इति विश्वः / लोके व व्यलोकि दृष्टः ? श्रुतिषु वेदेषु स्मृतौ धर्मशास्त्रे वा क श्रुतः ? न वापीत्यर्थः / 'असपिण्डां यवीयसीम्' इति स्मरणादिति भावः / सामान्येन विशेषसमर्थन.. रूपोऽर्थान्तरन्यासः // 16 / / ___ धर्मशास्त्रोंको देखे हुए ऊपर दिशाके स्वामी ब्रह्मा विचार कर स्वयंवर में नहीं गये, लोकमें, वेदमें अथवा मन्वादि स्मृति में पितामह ( बाबा =पिताके पिता, पक्षा०-ब्रह्मा ) के साथ विवाह कहां देखा गया है ? अर्थात् कहीं नहीं। [धर्मशास्त्रज्ञ ऊर्ध्वदिक्पाल पितामह का विचार कर उक्त कार्य करना उचित ही है ] // 16 //