________________ 560 नैषधमहाकाव्यम् / स्वसौन्दर्यगुणेनैव गुणरज्ज्वेति श्लिष्टरूपकं बद्ध्वा कृष्टैरिवेत्युत्प्रेक्षा / तदुद्वाहरसा - मीपरिणयरागादेव यये कुण्डिनं प्रति यातम् / यातेर्भावे लिट् / शेषैरवशिष्टः नैऋतादिभिः षडभिन यये // 10 // ___ इन्द्र, यम, अग्नि और वरुण-ये चारों दिशाओं (क्रमशः पूर्व, दक्षिण, अग्निकोण और पश्चिम दिशाओं) के स्वामी दमयन्तीके द्वारा अपने गुण (सुन्दरता आदि गुण, पक्षा०-रस्सी) बांधकर खींचे गयेके समान उस ( दमयन्ती) के साथ विवाह के अनुरागसे आये ( पाठा-उस स्वयंवर में आये ); शेष ( नैऋत्य, वायु, कुबेर, आदि छः) दिक्पाल नहीं आये // 10 // मन्त्रैः परं भीमपुरोहितस्य तबद्धरक्षं विशति क रक्षः। तत्रोद्युमं दिक्पतिराततान यातुं ततो जातु न यातुधानः / / 11 / / अथ षडभिनताधनागमने कारणमाह-मन्त्ररित्यादि। भीमस्य भीमभूपतेः पुरोहितस्य मन्त्रैः रक्षोनमन्त्रैर्बद्धरक्षं कृतरक्षणं तत् पुरं कुण्डिनपुरं रक्षो राक्षसः क्व विशति न छापीत्यर्थः। ततो रक्षाबन्धाद्धेतोः यातुधानो नैर्ऋतः, दिक्पतिः जातु कदापि तत्र पुरं यातुं गन्तुमुधमं नाततान न चकार // 11 // (शेष 6 दिक्पालोंके स्वयंवर में नहीं आनेका कारण कहते हैं-) राजा भीमके पुरोहितके मन्त्रोंसे सुरक्षित कुण्डिनपुर में राक्षस कहां प्रवेश करें अर्थात् कहीं भी नहीं। इसी कारणसे (नैऋत्यका) दिक्पाल राक्षसने अर्थात् नैर्ऋत्यने वहां (कुण्डिन पुर में ) जाने के लिये कभी उद्योग नहीं किया। [ मन्त्रोंसे सुरक्षित स्थानों में राक्षसोंका प्रवेश नहीं करना शास्त्रवचनसे सिद्ध है। जिस प्रकार लोकमें कोई मनुष्य स्वयं प्रवेश नहीं कर सकने योग्य स्थानमें प्रवेश करनेके लिये कभी उद्योग नहीं करता है। उसी प्रकार नैर्ऋत्य दिशाके पतिका मन्त्ररक्षित कुण्डिनपुरमें अपना प्रवेश अशक्य मानकर वहां जाने के लिये उद्योग नहीं करना उचित ही है ] // 11 // कर्तुं शशाकाभिमुखं न भैम्या मृगं गम्भोरुहनिर्जितं यत् / तस्या विवाहाय य यौविदर्भान् तद्वाहनस्तेन न गन्धवाहः // 12 // कर्तुमिति / गन्धवाहो वायुः भैम्या गम्भोरुहाभ्यां नयनारविन्दाभ्यां निर्जितं मृगं स्ववाहनमृगमभिमुखीकर्तुं न शशाकेति यत् तेनाशक्तत्वेन तद्वाहनो मृगवाहनः सन् इति शेषः / तस्या भैम्या विवाहाय विदर्भान् जनपदान् न ययौ / वाहनं विना गन्तुमशक्यत्वादिति भावः // 12 // वायु दमयन्तीके द्वारा मुख -कमलसे जोते गये मृगको दमयन्तीके सग्मुख नहीं कर सके; उसी कारण मृगवाहन वायु उसके साथ विवाह करने के लिये विदर्भदेशको नहीं गये / [ दमयन्तीने अपने नेत्र-कमलसे मृगको जीत लिया है, वायुदेवका वाहन वह मृग एक वार पराजित होनेसे वायुके द्वारा प्रेरित होनेपर भी दमयन्तीके सामने मुख नहीं कर