________________ दशमः सर्गः। नहीं उत्पन्न हुआ है अपितु स्वर्गमें उत्पन्न हुआ है अर्थात् हम देव हैं, मनुष्य नहीं हैं ).. और हमलोग कामदेव नहीं हैं ( पक्षा०-निर भिमानी हैं ), इन (हमलोगों ) में कोई अश्विनीकुमारके भावको नहीं धारण करता है अर्थात् कोई अश्विनीकुमार नहीं है, ( पक्षा०-कोई असत्यता नहीं धारण करता है ऐसा नहीं है अर्थात् असत्यता धारण करता ही है अर्थात् हम सभी असत्य नल हैं सत्य नल नहीं हैं ) अथवा-('ना' पदच्छेद करके ) हमलोगोंमें कोई मनुष्य ( अपने नलत्वको प्रमाणित करने के लिये देवोंने अपनेको मनुष्य कहा है ) असत्य नहीं है-हमलोग सच्चे अर्थात् वास्तविक नल ही हैं। [ इन्द्र आदिने वाक्छलसे कपटपूर्वक नलसे कहा कि हमलोग पुरूरवा, कामदेव. और अश्विनीकुमार-इन में कोई नहीं हैं; किन्तु हम नल हैं ] || 46 // तेभ्यः परानः 'परिभावयस्व श्रिया विदूरीकृतकामदेवान् / अस्मिन् समाजे बहुषु भ्रमन्ती भैमी किलास्मासु घटिप्यतेऽसौ // 47 // तेभ्य इति / पूर्वश्लोकस्थयच्छब्दापेक्षया तदो व्यवहारः / तत्तस्मादिलाभवता. धभावात्, श्रिया सौन्दर्यण, विदूरीकृतकामदेवान् अधरीकृतमन्मथान् , नोऽस्मान, तेभ्यः ऐलादिभ्यः परानन्यान् , परिभावयस्व निश्चिनुष्व, अन्यच्च-हे सौम्य / श्रिया विदरीकृतकामदेवान्नोऽस्मांस्तेभ्यः परानुत्कृष्टान् , विद्धि / अस्तु तावत् , अत्र किमर्थमागताः ? तत्राह-असौ भैमी अस्मिन् समाजे राजसङ्घ, बहषु मध्ये भ्रमन्ती पर्यटन्ती, अस्मासु घटिष्यते संयोच्यते, तथा बहुषु अस्मासु नलरूपेविति भावः, अत एव भ्रमन्ती नल इति भ्रान्तिमती सती, अस्मासुघटिष्यते सङ्गमिष्यते, किल इति सम्भावनायाम, इत्याशयेनात्रास्माकमागमनमिलि भावः / अवार्थद्व.. (तुम ) शोभासे कामदेवको तिरस्कृत करनेवाले हमलोगोंको उन (पुरूरवा, कामदेव, अश्विनीकुमारों) से भिन्न जानो। इस समाजमें बहुतों में ( अनेक राजाओंमें, अथवासमानरूपवाले हम पाचों में ) घूमती हुई (पक्षा०-भ्रमसन्देह करती हुई ) यह दमयन्ती हमलोगों ( में-से किसी एक ) में सङ्गत होगी अर्थात् वरण करेगी। [दमयन्तीको वरण करनेके दुरभिप्रायसे हमलोग यहां स्वयंवर में आये हैं ] // 47 // असाम यन्नाम तवेह रूपं स्वेनाधिगत्य श्रितमुग्धभावाः / तन्नो धिगाशापतितान्नरेन्द्र ! धिक चेदमस्मद्विबुधत्वमस्तु / / 48 // असामेति / हे नरेन्द्र ! यत् यस्मात् , तव नाम रूपञ्च स्वेन आत्मना, अधिगत्य ज्ञात्वाऽपि, श्रितमुग्धभावाः स्वीकृतमूढभावाः सन्तः, इह स्वयंवरे असाम, भवाम, तिष्ठामेति यावत् , अस्तेर्लोट , तत्तस्मात् , आशापतितान भैमीलाभाशया आपतितानागतान् , नः अस्मान् , धिक् , इदञ्चास्माकं विबुधत्वं देवत्वं विपश्चित्वञ्च धिगस्तुः 1. 'परिकल्पयस्व' इति पाठान्तरम् /