________________ दशमः सर्गः। 581 उन इन्द्रादिके वाक्छलको नहीं विचारनेवाले नलने उसे ( देवताओंकी बातको) नहीं समझा अर्थात् उसका सीधा ही अर्थ समझा विशेष कपटको नहीं। क्योंकि स्त्रीरत्व ( दमयन्ती ) को पाने के उपायमें संलग्न इन नलको कुछ भी स्फुरित नहीं हुआ। [ स्वयं दमयन्तीको पाने के यत्नमें नलके संलग्न रहनेसे अन्यासक्त चित्तवाले नलने देवोंके कहनेका गूढाभिप्राय नहीं समझा, अन्यासक्त चित्त गूढाभिप्राय शानमें प्रतिबन्धक होता ही है ] // 49 // या स्पर्द्धया येन निजप्रतिष्ठां लिप्सुः स एवाह तदुन्नतत्वम् / कः स्पर्द्धितुः स्वाभिहितस्वहानः स्थानेऽवहेलां बहुलां न कुर्यात् ? // 50 // देववाक्यावज्ञा प्रति हेत्वन्तरमाह-य इति / योऽपकृष्टः, येनोत्कृष्टेन सह, स्पर्द्धया संघर्षणेन, निजप्रतिष्ठामुत्कर्ष, लिप्सुःलब्धुमिच्छुः, लभेः सनन्तादुप्रत्ययः,सः स्पर्द्ध मान एव, तस्योत्कृष्टपुरुषस्य, उन्नतत्वमुत्कृष्टत्वम्, आह ब्रवीति, तच्चेष्टयव तस्याप. कृष्टत्वं स्फुटीभवतीत्यर्थः। तथा हि, कः प्रेक्षावान् , स्वेनैवाभिहिता स्वहानिः स्वापकर्षो येन तस्य, स्पर्द्धितुर्बहुलां भूयसीम्, अवहेलामवज्ञां, न कुर्यात् ? कुर्यादे. वेत्यर्थः / रीढावमाननावज्ञाऽवहेलनमसूर्तणम्' इत्यत्रावहेलयेति क्षीरस्वामी स्थाने युक्त 'युक्त द्वे साम्प्रतं स्थाने' इत्यमरः / भैमीलाभार्थ नलरूपधारणरूपया इन्द्रादि दुश्चेष्टया नलस्य महानुत्कर्ष एव आसीत्, ततः नलेन तेषामवज्ञा युक्तैवेति भावः // ____ जो (निकृष्ट व्यक्ति ) जिस उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ स्म से अपनी प्रतिष्ठाको चाहता है, वही ( निष्कृष्ट व्यक्ति ) उस ( उत्कृष्ट व्यक्ति ) की श्रेष्ठताको जिस कारणले कहता है अर्थात् अपकृष्ट व्यक्तिकी चेष्टाएं ही उत्कृष्ट व्यक्तिकी श्रेष्ठताको व्यक्त करती हैं, उस कारणसे स्वयं ( अपनी ) निकृष्टताको बतलानेवाले स्पर्द्धालुके विषयमें कौन (बुद्धिमान् व्यक्ति ) अधिकतम उपेक्षा नहीं करता है अर्थात् सभी उपेक्षा करते हैं। [ जो कोई स्वल्पगुणी व्यक्ति जिस किसी श्रेष्ठगुणी व्यक्ति के साथ स्पर्धाकर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है, वही व्यक्ति अपनी हीनता तथा दूसरेकी श्रेष्ठताको स्वयं कह देता हैं, इस कारण हीन व्यक्ति के विषयमें अवज्ञा करना (उनकी बातोंको कोई महत्त्व नहीं देना) श्रेष्ठ व्यक्तिके लिये उचित ही है। प्रकृतमें दमयन्तीको पाने के लिये अपना वास्तविक रूप तथा नाम छोड़कर इन्द्रादि चारो देवोंने नलका रूप तथा नाम धारण कर स्वयं ही नलकी श्रेष्ठता स्वीकार कर ली, अत एव नलका उनकी बातों का महत्त्व नहीं देना अर्थात् उपेक्षा करना उचित ही है ] // 50 // गीर्देवतागीतयशःप्रशस्तिः श्रिया तडित्वल्ललिताभिनेता। मुदा तदाऽवैक्षत केशवस्तं स्वयंवराडम्बरमम्बरस्थः / / 51 // गीरिति / तदा तस्मिन् काले, केशवो विष्णुः, गीर्दैवतया वाग्देवतया, गीता यशःप्रशस्तिः कीर्तिप्रबन्धो यस्य सः, श्रिया लक्ष्मीदेव्या स्वशरीरस्थया, तडित्वतः सविद्युतो मेघस्य, ललितस्य विलासस्य, अभिनेता अनुकर्ता सन्, अम्बरस्थः तं