________________ नवमः सर्गः। अपार्थपतिति / हे सारसारि ! सरोरुहाति ! 'सारसं सरसीहहम्' इत्यमरा। तब विवाहे अमकोऽग्निः याशिकाय फरकृति पाजकफूरकृतिश्रमं समिन्धनप्रया. समपार्थयन् व्यर्थयम् एषा रोषेणैव अपने पाषा स्वरूपेण तु न बचेत् तदा मलः अम्पमावादग्निसालिको न भवतीस्पनम्मिसाधिकरतं कं विधिमनुष्ठान कर्तु मशक्कन कधिदित्यर्थः // 8 // याजक (हवनकर्ता पुरोहित आदि ) के फूंकनेको व्यर्थ करता हुआ अग्नि यदि क्रोधसे जले तथा शरीर ( ज्वाला ) से नहीं जले तो नल तुम्हारे विवाह में अग्निसाक्षित्वके विना किस विधि (लाजा होम आदि कार्य ) को करने के लिये समर्थ होगा ? अर्थात् किसी विधिको करने में समर्थ नहीं होगा। [ क्रोधके कारण अग्निके हवनकर्ताओं द्वारा फूंकने पर भी नहीं जलनेसे नलके साथ तुम्हारा सविधि विवाह नहीं हो सकेगा, अतः तुम अग्निको वरण करलो]॥ पतिपरायाः कुलजं वरस्य वा यमः कमप्याचरितातिथि यदि | कथं न गन्ता विफलीविष्णुतां स्वयंवरः साध्वि! समृ द्धमानपि भृत्वृ" इत्यादिना खच "अद्विषदजन्तस्य मुम्"। तस्या वरस्य वोढुर्वा कुलजं कमपि / जनमतिथिमभ्यागतमाचरिता यदि मारयिष्यति चवित्यर्थः / “अनद्यतने लुट्" / हे साध्वि ! समृद्धिमान् सर्वसाधनसम्पनोऽपि स्वयं वियते अरिमन्निति स्वयंवरः स्वयंधरकर्म। "ग्रहवृहनिश्चिगमश्चेत्यप्रत्ययः / विफलीभविष्युतां "भुवश्च"इति इप्णुप्रत्ययः / कथं न गन्ता, गमिष्यत्येवेत्यर्थः / गमेछुट / वृथा नलेकासक्तिहतासीति भावः // 8 // यम पतिको वरण करनेवाली तुम्हारे या पति ( नल ) के कुलमें उत्पन्न ( किसी बान्धव ) को यदि अतिथि बना लेंगे अर्थात् तुम्हारे या नलके कुलमें उत्पन्न किसी व्यक्तिकी मृत्यु हो जायेगी तो हे पतिव्रते ! समृद्धियुक्त भी स्वयंवर कैसे होगा ? अर्थात् अशीचके कारण स्वयंवर रुक जायेगा, अतएव तुम नलको वरण करनेका दुराग्रहकर यमको रुष्टकर अपने या नल्को कु.ल में उत्पन्न किसी आत्मीय बान्धकी मृत्युका कारण बननेकी मूर्खतः न करो] // 81 // अपर्श पतिः स्वामित या परः सुरः स ता निषेधेद्यति नैषधक्र.धा। नलाय लोभायत पाणयेऽपि तत् पिता कथं त्वां वद संप्रदास्यते / / 2 / / अपामिति / हे साध्वि ! अपांपतिः स प्रसिद्धः परः सुरः स्वामितश अप्पतित्वाम्नैपधे नले ऋधा क्रोधेन ता अपो निषेधेत् प्रतिबनीयात् यदि ताहि लोमन आयतपाणये प्रसारितहस्तायापि लोल्याज्जलं विना जिभतेऽपीत्यर्थः / दलाय पिता भीमस्त्वां कथं सम्प्रदास्यते न कथञ्चिदित्यर्थः / वद / वाक्यार्थः कर्म // 82 // वे दूसरे देव अर्थात् वरुण स्वामी होनेसे नल-विषयक क्रोधके कारण जलको यदि मना कर देंगे तो तुम्हारे पिता लोभ ( तुम्हें पानेके लोभ से हाथ फैलाये हुए नलके लिये