________________ नवमः सर्गः। 535 धवलमेचको" इत्यमरः / अत्र हनूमदग्रहणं पूर्वकल्पाभिप्रायमन्प्रथा कृतत्रेतावतार• पुरुषयोः पौर्वापयविराधादिति // 23 // मैंने जो अपना नाम व्यर्थमें प्रकट कर दिया, यह महेन्द्रका बडा कार्य छोड़ दिया। हनुमान् आदिके द्वारा ( ठीक 2 दूतकार्य करके ) यशसे श्वेत किये गये मार्गको मैंने शत्रुओंकी हँसी ( उपहास ) से श्वेत ( पाठा०-काला अर्थात् दूषित ) कर दिया / [ हनुमान् आदि दूतोंने अपना दूतकार्य यथोचित करके यश प्राप्त किया तथा मैंने अपने नामको यहां वतलाकर बड़ा अनुचित किया, अतः मेरे शत्रु 'इन्द्रादि दिक्पालोंका दूतकार्य स्वीकार कर नलने वहाँ पर अपना ही कार्य सिद्ध किया, या इन्द्रादिका कार्य नहीं किया ऐसा उपहास करेंगे, इस प्रकार कर्तव्यभ्रष्ट होकर मैंने शत्रुओंका उपहास प्राप्त किया ] // 123 // धियात्मनस्तावदचारु नाचरं परस्तु यद्वेद स तद्वदिष्यति / जनावनायोद्यमिनं जनार्दनं क्षये जगजीवपिवं वदन् शिवम् / / 124 धियेति / अथवा तावदात्मनो धिया बुद्धिपूर्वकमित्यर्थः / अचार्वसाधु नाचरं एवं स्थिते परोऽन्यो जनो यदचारु वदिष्यति तत्त जनानामवनाय रक्षणायोद्यमिनः प्रत्ययः / अथ सये कल्पान्ते जगजीवानां पिबतीति पिबं संहर्तारं रुद्रमिति शेषः / "पाघ्रादिना" शप्रत्ययः / शिवं शान्तं वदन् , शिवमशिवमशिवं शिवा वदनित्यर्थः / स पर एव वेद / अनर्गलो लोकस्तावदास्तां ममानपराधित्वमन्तर्यामिसालि. कमिति भावः // 124 // ( अथवा- ) यह कार्य (स्व-नाम-प्रकाशन ) मैंने बुद्धिसे नहीं किया अर्थात् अबुद्धिपूर्वक ( उन्मादित होनेसे अचानपूर्वक ) किया (अतः मेरा कोई अपराध नहीं है, फिर भी ) लोगोंकी रक्षाके लिए प्रयत्नशील (विष्णुको) जनार्दन ( मनुष्योंको पीडित करनेवाला ) तथा प्रलयकालमें संसारके प्राणों को पीने (नष्ट करने ) वाले ( रुद्रको) शिव (मङ्गल करनेवाला ) कहनेवाले दूसरे व्यक्ति (या शत्रु ) जो (मशानपूर्वक नाम प्रकाशित करनेसे दोषरहित होनेपर भी मुझे सदोष ) कहेंगे, वह मैं जानता हूँ। लोग अनर्गल बातें कहा करते हैं, उसे रोकनेका कोई उपाय नहीं है / / 124 // स्फुटत्यदः किं हृदयं त्रपाभरात् यदस्य शुद्धिविबुधैविबुध्यताम् / विदन्तु ते तत्त्वांमद तु दन्तुरखनानने कः करमर्पयिष्यति // 125 / / स्फुटनीति / अदो हृदयं त्रपाभराल्लज्जातिभारान् स्फुटति किम् ? स्फुटिष्यति किम् ? "आशंसायो भूतवच" इति चकारादाशंसायां भविष्यदर्थे वर्तमानवप्रा त्ययः / यद्यस्मात् स्फुटनादस्य हृदयस्य शुद्धिर्विबुधैदवैविबुध्यतां ज्ञायताम् / अतः स्फुटनमाशास्यमित्यर्थः / परन्तु ते विबुधास्तत्त्वं हृदयशुद्धि विदन्तु, तथापि दन्तुर 30 .