________________ मतमा पर्गः। दोनों हाथ-इन पाँचों में शोभाकी याचना मधुकरी मिक्षाके समान होती है। [ मधुकरी भिक्षा पांच गृहाश्रमियोंसे ली जाती है, यह शाल वचन है। दमयन्तीके मुख, चरणदय और पाणिद्वय कमलसे अधिक एवं नित्य शोभायुक्त रहनेवाले हैं ] // 103 // एष्यन्ति याषणनागिन्तान नृपाः स्मराताः शरणे प्रवेष्टुम् / इमे पदाब्जे विधिनापि' सृष्टास्तावत्य एषांगुलयोऽत्र' रेखाः / / 104 // एष्यन्तीति / स्मरार्ता नृपा इमे पदाम्जे शरणे प्रवेष्टुं यावन्ती गणमा पस्प तस्मात् यावद्णनात् पावरसपाकात् दिगन्तात् पावत् सहयाकेभ्यः दिगम्तेभ्य इत्यर्थः / जातावेकवचनम्, एष्यन्ति, अनामयोः पदाम्जयोः तावस्य एव तत्सइया एवाछय एव रेखाः मशः, स्वयंवरार्थमागामिमा राज्ञामपादानविक्सापासूचकरेखा इव दशालयः सृष्टा इस्युस्प्रेक्षा // 10 // कामपीडित राजालोग शरणभूत इन ( दमयन्तीके ) दोनों चरणों में प्रवेश करने के लिये जितनी दिशाओं के अन्तसे आगे, ब्रह्माने भी इन चरणोंमें उतनी ही अर्थात् दश भङ्गुलियोंको रेखारूपमें बना दी है ( पाठा०-............ अङ्गुलियां रेखा रूपमैं नहीं बना दी है ? अर्थात् बना दी है)। [ दमयन्तीके दोनों पैरोंकी दश अहुलियोंको ब्रह्माने इस भभिप्रायसे बनाया है कि दशों दिशाओं के अन्ततकके राजा कामपीडित होकर रक्षा पानेके लिये इन दोनों चरणों के पास आवेंगे] // 104 // "प्रियासखीभूतवतो मुदेवं व्यधाविधिः साधुक्शत्वमिन्दोः / एतत्पदच्छमसरागपप्रसौभाग्यभाग्यं कथमन्यथा स्यात् // 105 // प्रियेति / विधिविधाता प्रियायाः भैम्याः सखीभूतवतः मुहमतस्य अभूततमावे ग्विः, भवतेः कवतुप्रत्ययश्च / इन्दोरिदं साधुदशस्वं समीचीनावस्थरवं सम्यक दशानां परिपाकं मुदा सन्तोषेण व्यधात् विहितवानित्यर्थः / अन्यथाऽस्येन्दोः एतस्याः पदस्य छद्म च्छलं यस्य तस्य सरागपभस्य सौभाग्ये सौन्दर्ये भाग्य कथम्? एतबरणशोणसरोजसारश्यं कथमित्यर्थः // 105 // प्रिया दमयन्ती मित्र के ( पाठा० -पैरके नख ) बने हुए. चन्द्रमाकी अच्छी अवस्था ( पक्षा०-दश संख्यात्व ) को प्रसन्न ब्रह्माने कर दिया है / नहीं तो दमयन्तीके चरणके व्याजसे रक्तकमलकी शोभाको पानेका भाग्य चन्द्रमाको कैसे होता ? / [ जब प्रमा दमयन्तीके चरणोंकी रचनाकर रहे थे तब चन्द्रमा आकर उन चरणोंकी विनम्र भावसे सेवा करके चरणोंका मित्र बन गया अथवा-पाठान्तरसे दशनखरूप बनकर चरणोंकी 1. "विधिना निसृष्टा" इति पाठान्तरम् / 2. "न रेखाः" इति पाठान्तरम् / 3. "प्रियानखी" इति पाठान्तरमेव समीचीनं प्रतिभाति / 26 नै