________________ 424 नैषधमहाकाव्यम्। नाभिर्मुलं यस्य सनामिबन्धुरसि कचिदिव्यपुरुष उत्प्रेस इत्यर्थः। "ज्योतिर्जन. पद" इत्यादिना समानशब्दस्य सभावः // 28 // जिस कारण लोकोत्तर अनिर्वचनीय तुम्हारा रमणीय रूप है और द्वारपालोंको अन्धा. करनेका ( उनसे अदृष्ट होनेका ) लोकोत्तर अनिर्वचनीय सामर्थ्य है, उस कारणसे हल्दी ( पाठा०-सुवर्ण ) को जीतनेवाली कान्तियोंसे रुचिकर तुम अमृतभोजी देवताओं के समान हो / अथवा-....."सामर्थ्य है और हल्दी ( पाठा०-सुवर्ण ) की जीतनेवाली कान्तियोंसे रुचिकर हो, उस कारण तुम अमृतभोजी देवताओं के समान हो। [ सुन्दरतम सौन्दर्य, सामर्थ्य कान्तिसे मैं अपने देवता मानती हूं, आप कोई देवता हैं क्या ?] // 28 // न मन्मथस्त्वं स हि नास्तिमूतिर्न 'वाश्विनेयः स हि नाद्वितीयः / चिहै: किमन्यैरथवा तवेयं श्रीरेव ताभ्यामधिको विशेषः / / 56 / / नेति / त्वं देवेष्वपीति शेषः / मन्मथः कन्दर्पो नासि / हि यस्मात् स मन्मथः। अस्तिमूर्तिः विद्यमानमूतिः न भवतीति नास्तिमूर्तिः अनङ्गः सुबधिकारे "अस्तिजीरादिवचनम्" इति बहुव्रीही न-समासः / आश्विनेयोऽश्विनीपुत्रः न / हि यस्मात् सोऽद्वितीय एकाकी न / अथवा अन्यैश्विकैरभिज्ञानैः किम् ? किन्तु तवेयं श्रीः शोभैव ताम्यां द्वाभ्यामधिकोऽसाधारणो विशेषो व्यावर्तकधर्मः / तस्मादन्यः कोऽपि लोकोतरस्त्वमिति तत्त्वं किन्तु नलश्चेदसि धन्या भवामीति भावः // 29 // __आप मन्मथ ( कामदेव-मनको मथन करनेवाला) नहीं हैं, क्योंकि वह शरीरशून्य है ( अथच आप मानको मथन करनेवाले नहीं, अपितु हर्षित करनेवाले हैं, यह भी ध्वनित होता है ), अथवा-आप अश्विनीकुमार नहीं हैं, क्योंकि वह अकेला नहीं है ( सर्वदा दो रहते हैं, अकेला कभी नहीं रहते, और आप अकेले हैं ), अथवा दूसरे चिह्नों ( अशरीरी होना या द्वितीयसे सहित होना) से क्या ? अर्थात् कुछ प्रयोजन नहीं हैं; उन दोनोंसे ( अश्विनीकुमारसे, अथवा कामदेव तथा अश्विनीकुमारसे ) यह शोभा ही असाधारण विशेषता है अर्थात् आपकी जो लोकोत्तर अधिक शोभा है, उसीसे आपको देखकर किसीको कामदेव तथा अश्विनीकुमार होनेका सन्देह नहीं होता, अतएव उनके अशरीरी या सदा दो का साथ रहना-इन चिह्नोंसे कोई प्रयोजन नहीं है / [ कामदेव तथा अश्विनीकुमारसे अधिक सुन्दर आप कौन हैं ? ] // 29 // आलोकतृप्तीकृतलोक ! यस्त्वामसूत पीयुषमयूखमेतम् / कः स्पधितुं धावति साधु सार्धमुदन्वता नन्वयमन्यवायः / / 30 // आलोकेति / आलोकेन दर्शनेन त्वत्कर्मकेण उद्योतेन च / 'आलोकौ दर्शनोद्योती' 1. "-चाविनेयः-"इति पाठान्तरम् / 2. "-मेनम्-" इति पाठान्तरम् /