________________ 428 नैषधमहाकाव्यम् / मापके ( पैरके ) अङ्गुष्ठकी शोभाको निश्चय ही कामदेव नहीं पा सका, क्योंकि उस (कामदेव ) को जीतने वाले (शिवजी ) का यह अर्धचन्द्ररूपा चिह्न नख का वेष धारणकर इस ( अङ्गुष्ठ ) में है। [शिवजीका भालस्थ अर्द्धचन्द्ररूप चिह्न आपके चरणों के अंगूठे में है, अत एव स्वविजयी शिवजीके, भयसे कामदेव उस अंगूठेकी शोभाको भी नहीं पा सका तो फिर आपके सम्पूर्ण शरीर या अन्य किसी एक शरीरकी भी शोभाको कैसे पा सकता है ? अन्य भी कोई व्यक्ति अपने विजेताके चिहको देखकर भयसे वहां नहीं जाता है / अथवाजिस अर्द्धचन्द्ररूप चिह्नको शिवजी अपने शिरपर धारण करते हैं, वह चिह्न आपके चरणाअष्ठमें है, अतः कामविजयी शिवजीसे भी आपकी शोभाके श्रेष्ठ होनेसे आपके चर. णाङ्गुष्ठश्रीको कामदेवका नहीं पाना ठीक ही है ] / / 36 / / . राजा द्विजानामनुमासभिन्नः पूर्णा तनकृत्य तनुं तपोभिः / कुहषु रश्येतरता किमेत्य सायुज्यमाप्नोति भवन्मुखस्य / / 37 / / राजेति / द्विजाना राजा चन्द्रो याह्मणोसमश्च अनुमासं प्रतिमासं भिन्नोऽन्यः सन् अर्धेन्दुरम्यथैकस्य प्रतिकुहषु मुखसायुज्याभावादिति भावः। पूर्णा राकास्थिति भावः / सर्नु शरीरं तपोभिः प्रत्यहं देवताभ्यः कलासमर्पणरूपैरिति भावः / तनूकृत्य का अमावास्यासु स्येतरतामहरयतामेश्य भवन्मुखस्य सायुज्यमैक्यं प्राप्नोति किमित्युत्प्रेणा / यथा कश्चिद् ब्राह्मणः तीवेण तपसा ब्रह्मसायुज्यमामोति तददि. त्यर्थः / अन्यथा कथं कुषु न श्यत इति भावः // 37 // द्विजराज ( चन्द्रमा, पक्षा०-प्रामणश्रेष्ठ) प्रत्येक मासमें भिन्न होता हुआ पूर्ण ( सोलह कलाभोंसे परिपूर्ण, पक्षा०--हृष्टपुष्ट या समस्त ) शरीरको कृश करके 'कुहूँ' संशक अमा. वस्याओं में अदृश्य होकर आपके मुखका सायुज्य (समानता ) प्राप्त करता है क्या ? ! [ जिस प्रकार कोई श्रेष्ठ ब्राह्मण अपने समस्त शरीरको चान्द्रायण-सान्तपन आदि तपस्याओं से क्षीण कर अदृश्य होकर ब्रह्मसायुज्यको प्राप्त करता है, उसी प्रकार चन्द्रमा भी प्रत्येक मासमें सोलह कलाओंसे पूर्ण अपने शरीरको देवताओं के लिये प्रतिदिन एक एक कलासे समर्पण रूप तपस्यासे क्षीण करके 'कुहू' (सम्पूर्ण अदृश्य चन्द्रवाली अमावस्या तिथियों) में अदृश्य होकर आपके मुखके सायुज्य (एकीभाव अर्थात् सरूपता ) को प्राप्त करता है क्या ? / इस पद्यमें "अनुमासमिन्नः" शब्द देनेसे प्रत्येक मासमें भिन्न 2 चन्द्रमा है, एक ही चन्द्रमा प्रत्येक मासकी पूर्णिमाको पूर्ण तथा अमावस्याको क्षीण होता है ऐसा नहीं समझना चाहिये // 37 // 'कृत्वा दृशौ ते बहुवर्णचित्रे कि कृष्णसारस्य तयोगस्य / अदूरजापद्विदरप्रणालीरेखामयच्छद्विधिरर्धचन्द्रम // 38 // 1. "विधाय चित्रे तव धीरनेत्रे" इति पाठान्तरम् / 2. "-प्रणालीच्छलाद्' इति पाठान्तरम् /