________________ 40 नैषधमहाकाव्यम् / आदर (ता हूं ( अथवा-हे चन्द्रमुखि ! इन्द्रके... साथ तुममें अधिक आदर करता हूं) ऐसे कल्याणके सामने आनेपर भी तुम विमुख होती हुई ( उस कल्याणसे मुंह मोड़ती हुई) उसको वापस लौटा रही हो ( पाठा०-विमुख होती हुई क्यों वापस लौटा रही हो ? ) / [ 'देवराज इन्द्र भी तुममें अनुराग करते हैं, इस कारण तुम ही परम सुन्दरी हो, अन्य स्त्रियां नहीं, इस कारण मैं तुमको अधिक आदर तथा दूसरी स्त्रियोंको अनादरसे देखता हूँ, परन्तु ऐसे सामने आये हुए कल्याणको पराङ्मुखी होकर लौटानेसे मैं अब तुम्हें अभागिनी मानता हूँ, पूर्वोक्त श्लोक ( 38) के अनुसार नलने कुछ कटु वचन कहा ] // 40 / / दिवौकसं कामयते न मानवी 'नवीनमश्रावि तवाननादिदम् / कथं न वा दुर्ग्रह दोष एष ते हितेन सम्यग्गुरुणापि शाम्यते / / 41 // दिवौकसमिति / मानवी मानुषी, दिवौकसं देवं न कामयते नापेक्षत इति इदं नवीनमश्रुतपूर्व वचस्तवाननादश्रावि श्रुतम् हन्त, एप ते तव दुर्ग्रहदोषः सूर्यादिग्रहः दोषश्च / 'अथार्कादिनवग्रहाः' इति वैजयन्ती / हितेनाप्तेनानुकूलेन च गुरुणा पित्रा न निवर्यते / शमेय॑न्तात्कर्मणि लट / गुरुरात्मवतां शास्ता, "किं कुर्वन्ति ग्रहाः सर्वे केन्द्रस्थाने बृहस्पतौ" इति वचनादपत्यशासने ग्रहान्तरनिरासे च गुवोरेवाधिकारादिति भावः / अत्राभिधायाः प्रकृतार्थनियन्त्रणादप्रकृतार्थप्रतीति निरेव न श्लेषः // ___ 'मानुषी देवको नहीं चाहती है' यह नवीन (नयो बान, पाठा०-विचित्र वात) तुम्हारे मुखसे ( मैंने ) सुनी, ( संसार में सभी लोग अपनेसे श्रठ की चाहना करते है। इस सर्वसम्मत सिद्धान्तसे विपरीत होने से तुमने विलकुल ही नयी बात कही ) / तुम्हारे इस दुराग्रह ( बुरे हट ) दोषको हित ( हितकारी) पिता आदि गुरुजन भी क्यों नहीं अच्छी तरह शान्त ( दूर ) करते हैं ? अथवा-तुम्हारे अच्छी तरहसे हितकारी पिता आदि गुरुजन इस दुराग्रह दोषको क्यों नहीं शान्त करते हैं ? / [तुम्हारे हितैषी पिता आदि गुरुजनको चाहिये कि तुम्हारे इस दुराग्रह को छुड़ाकर तुम्हें इन्द्र आदि देवों में से किसी एकको वरण करनेका उपदेश दें / अथवा-तुम्हारे इस दुष्ट ग्रह अर्थात् शनि-सूर्य आदिके दोष अर्थात् तज्जन्य पीड़ा आदिको ( केन्द्र या उच्च स्थानमें रहनेसे) हितकारक गुरु ( बृहस्पति ग्रह ) क्यों नहीं सर्वथा शान्त करते हैं ? अथवा-तुम्हारे बरण-सम्बन्धी इन्द्रादिके आग्रह दोषको ( उनके आचार्य) गुरु भी क्यों नहीं सर्वथा दूर करते ? तुम्हारा दुराग्रह हितकारक पिता आदि, अथवा श्रेष्ठस्थान ( केन्द्र ) आदिपर स्थित होनेसे हित ( उस दोषका नाशक ) बृहस्पति ग्रह क्यों नहीं सर्वथा शान्त करता ? अथ च इन्द्र के तुम्हारे विषयमें अनुरागको अपना शिष्य मानकर बृहस्पतिरूप गुरु क्यों नहीं सर्वथा दूर करेगा ?, अथवा-सर्वत्र 'सम्यक' शब्दका सम्बन्ध 'हित' शब्दके साथ करके अर्थ लगाना चाहिये ] // 41 / / 1. "विचित्र" इति पाठान्तरम् /