________________ नवमः सर्गः। 506 निपाप स्वमात्मानं तया भैम्य पथोदितं यथोक्तं तवनातक्रमणेनेत्यर्थः। "पथासास्पे" इत्यव्ययीभाषः। कृतान्तदूतं नामन्पत किवदयं निर्दय पथा तथा स्वं कृतान्तमेवामन्यत / दूतधर्मस्वात् निर्वाशिय वयामीप्यमन्यतेत्यर्थः // 72 // ये ( नल ) अमृत-रस-तुल्य तथा अपनी कामाग्निकी आहुतिरूप अर्थात् बढ़ानेवाली वाणी ( दमयन्तीका कथन ) सुनकर उसने जैसा यमका दूत कहा था (श्लो० 66) वैसा नहीं, किन्तु अपनेको निर्दय यम हा माना ( अथवा-अपनेको सम्यक् प्रकार यम ही माना ) / [ यमदूत तो केवल प्राणियोंको यमके समीप पहुँचा देते हैं, उन्हें निर्दयतापूर्वक दण्डित करनेवाला तो यम ही है, अतएव मैने ऐसी पतिव्रताको इन्द्रादिका सन्देशसे जो कष्ट पहुँचाया है वह निर्दय यमके कार्य जैसा है। ऐसे निर्दयतापूर्वक इन्द्रादिके दूतकर्म करनेपर भी उनमें अननुरक्त तथा अपनेमें अनुरक्त दमयन्तीको देखकर नलका कामोद्दीपन होना उचित ही हैं ] // 72 // स भिन्नमर्मापि तदातिकाकुभिः स्वदूतधर्मान्न विश्न्तुमैहत / शनैरशंसन्निभृतं विनिश्वसन विचित्रवाक्सिशिवाण्डनन्दनः ||3|| स इति / विचित्रवाच चित्रांशखण्डिनन्दनो बृहस्पितिः। 'जीव आशिरसो वाच स्पतिश्चित्रशिखण्डिजः' इत्यमरः / स नलस्तस्याः भैग्या आा, निमित्तेन काकुभि करुणोक्तिभिभिन्नमर्मापि विदी हृदयोऽपि स्वतधर्मादनापटभूताद्विरन्तुं नहत नैच्छत् / किन्तु स्वेच्छाभङ्गानिभृतं विनिश्वसन शनरत्वरया अशंसवात् // 73 // उस दमयन्तीके पीडायुक्त वचनोंसे भिन्नमर्मवाले भी वे ( नल ) अपने दूत-धर्म विरत नहीं हुए। धीरेसे ( दमयन्तीसे छिपाकर ) दीर्घश्वास लेते हुए, आश्चर्यजनक बातों (के कहने ) में बृहस्पति वे नल बोले-(अथवा-विरत नहीं हुए और दीर्घश्वास... ... ... वे नल ( कामपीड़ित होने के कारण ) धीरेसे बोले-)। [दमयन्तीके वचनोंसे कामपीड़ित होनेपर भी नल का दूत-कर्मसे विरक्त न होना उनका धीरोदात्त नायक होना सूचित करता है। दिवोधवस्त्वां यदि कल्पशाखिनं कदापि याचेत निनाङ्गनालया। कथं भवरस्य न जीवितेश्वरी न मोघयामः स हि भोरु / भूकहः / / 74 // दिव इति / वक्ष्यमाणविभिषिकानुगुए.मामन्त्रयते-हे भीरु ! भयशीले ! "श्रियः क्रुक्लुको" इति क्रुकप्रत्ययः / “ऊत" इत्यूछ / अम्बार्थनोहत्वः” / दियोधयः स्वर्पतिरिन्द्र. कदापि निजागनालयं कल्पशाखीनं त्वयात यदि दुह्यादिपाटाद द्विकर्मकत्वम् / तदा कथमस्येन्द्रस्य जीवितेश्वरी न भवः भवेत्यर्थः / कुतः हि यस्मात्स भूरहः कल्पवृक्षः न मोघयाच्न सफलप्रार्थनः // 74 / / (सामादि चार उपाशेंके प्रयोगसे निपुण नल अष्टम सर्गमें इन्द्रादि दिवालोंका 1. "निजाङ्गणालयम्" इति पाठान्तरम् / 2. "जीवितेश्वरा" इति "प्रकाश" सम्मतं पाठान्तरम् /