________________ 432 नैषधमहाकाव्यम् / अधिक पूज्य होने के कारण मस्तकपर धारण किया जाना उचित ही है। आपकी शोमा संसारके सारभूत सुन्दर पदार्थों वाली तथा चन्द्रमाकी शोभा आपकी शोभासे अत्यन्त तुच्छ है, अतः जब अतितुच्छ शोभावाला चन्द्रमा जगत् का आलादक है तो फिर आपके विषय में क्या कहना है ? आप चन्द्रमासे भी अत्यधिक सुन्दर हैं ] // 42 // आदेहवाहं कुसुमायधस्य विधाय सौन्दर्यकथादरिद्रम् / स्वदशिल्पात्पुनरीश्वरेण चिरेण जाने जगन्धकम्पि / / 3 / / भादेहेति / ईश्वरेण शम्भुना कुसुमायुधस्य कामस्य देहदाहादारभ्य आदेहवाह मर्यादायामध्ययीभावः। जगल्लोकं सौन्दर्यकथादरिद्रं सोन्दर्यवार्ताशून्यं विधाय चिरेण स्वदस्य शिल्पानिर्माणात् विश्वं पुनरम्बकरिप अनुकम्पितं स्वया पुनः सौम्पर्षमरितं कृतमिति जान इस्युस्प्रेला / तब मतिमतः कामात् को भेद इति भाषः // 3 // शकरजी ने कामदेवके शरीर-दाहसे लेकर संसारको सौन्दर्यको चर्चासे शून्य बनाकर फिर बहुत दिनों के बाद आपके शरीरकी कारीगरी ( रचना ) से संसारपर दया की। [ पहले कामके शरीरको जलाने पर संसारमें कही सुन्दरता का नामतक शेष नहीं रह गया था, किन्तु बहुत दिनों बाद भापकी इस सुन्दरतम शरीरसे फिर संसारपर शङ्करजीने अनुग्रह किया है। मानो आप दूसरा काम ही है। अन्य भी कोई ईश्वर (ऐश्वर्य-सम्पन्न राजा आदि) किसी को दरिद्र बनाकर बादमें अनुग्रहकर उसकी पूर्ति कर देता है ] // 43 / / मही कृतार्था यदि मानवोऽसि जितं दिषा यामरेषु कोऽपि / कुलं त्वयालस्कृतमौरगम्चेमाधोडाप कस्योपरि नागलोकः / / 44 / / महीति / मनोरयं मानवो मनुष्योऽसि पदि "तस्येवम्" इत्यण्प्रत्ययः / मही कृ. तार्था / अमरेषु कोऽप्यसि पदि विवा लोकेन नितं सर्वोत्कर्षेण स्थितं नपुंसके भावे का। स्वचा औरगं कुलं मागकुलमलाकृतं चेत् नागोऽसि चेदित्यर्थः / अधः सर्वाध: स्थितोऽपि नागलोकः कस्य लोकस्योपरि न / सर्वस्याप्युपरि वर्तत इत्यर्थः। "उपर्पपरिष्टात्" इति निपातः॥४४॥ ___ आप यदि मानव है तो ( मृत्यु लोकमें निवास करने के कारण) भूमि कृतार्थ हो गयी, यदि देवताओं में कोई है तो स्वर्गने ( सबको ) जीत लिया, और यदि नागवंशको सुशोभित किये हैं अर्थात् नागवंशमें जन्म लिये हैं तो ( नागवंशका निवास स्थान होनेसे सबके) नीचे रहता हुआ भी नागलोक किसके ऊपर ( किस लोकसे श्रेष्ठ ) नहीं है ? अर्थात् स्वर्गमर्त्य आदि लोकोंसे नागलोक ( पाताल ) ही श्रेष्ठ है / [ आपके मानव होनेपर मही ( "मयते पूज्यते इति मही" इस विग्रहसे 'पूज्य' अर्थवाली भूमि ) वास्तविक अर्थवाली हो गयी और देवकुलोत्पन्न होनेसे दिव ( "दीम्यति = विजिगीषते इति द्यौः" इस विग्रहसे 'विजयी अर्थवाली दिव अर्थात् स्वर्ग ) भी विजयी हो गया और आपके नागवंशोत्पन्न होने