________________ बष्टमः सर्गः। 433 पर नागलोक 'न गच्छन्तीति अगाः, न अगाः नागाः, तेषां लोकः' इस विग्रहसे गमन. शील न होनेसे अधोभागस्थ भी नागलोक आपके जन्मस्थान होनेसे सर्वोपरि गामी हो गया / आप मानव, देव और नाग-इन मेंसे किसी वंश में उत्पन्न हुए हैं ] // 44 // सेयं न धत्तेऽनुपपत्तिमुच्चैर्मच्चित्तवृत्तिस्त्वयि निन्त्यमाने / ममौ स भद्र चुलुके समुद्रस्त्वयात्तगाम्भीर्यमहरूषमुद्रः / / 45 / / सेयमिति / स्वयि चिन्त्यमाने स्वरूपतो गुणतन विभाग्यमाने सति सेयं विभा घयन्ती मचित्तवृत्तिः उच्चैर्महतीमनुपपत्ति न धत्ते समुद्रस्यागरस्यधुलुके अनुपप. मतावृद्धिं न करोतीत्यर्थः / तत्र हेतुमुस्प्रेक्षते स समुद्रः स्वया आता गृहीता गाम्भीर्यमहत्वे एव मुद्रा चिह्न यस्य स सन् / अत एव चुलुके मुनिमुष्टिगर्भे ममी भद्र युक्त. मित्यर्थः / अन्यथा कथं तथा महतो गम्भीरस्य तस्य मुनिचुलकितेति भावः / मन्त्र मानहेतोरात्तस्यादिविशेषणगत्या निर्देशापदार्थहेतुकं काम्यलिगमलकारः / तस्सी. यमुस्प्रेक्षा भद्रमिति ब्यक्षकप्रयोगाद्वाच्या // 45 // ___ आपका ( गाम्भीर्य एवं महत्त्व का ) विचार करनेपर मेरी चित्तवृत्ति उसमें अनुपपत्ति ( युक्तिहीनता) को नहीं धारण करती है अर्थात् उस बातको असङ्गात नहीं समझती है। ( वह पात यह है कि ) आपके द्वारा महत्त्व तथा गाम्भीर्य की मर्यादाको ले लेने पर ( उन दोनों से हीन ) समुद्र ( अगस्त्य मुनिके) चुल्लूमें समा गया। ['इतने विशाल समुद्रको अगस्त्य मुनि ने बहुत ही होटे अपने चुल्लू में लेकर किस प्रकार पान कर लिया, यह बात पहले मेरे मन में युक्तिसंगत नहीं जान पड़ती थी, किन्तु अब यह बात युक्तिसंगत इसलिये जान पड़ती है कि आपने समुद्रके महत्त्व तथा गाम्भीर्यरूप मर्यादा को ले लिया है, अत एव वह समुद्र तुच्छ हो जाने के कारण अगस्त्य मुनिके चुल्लूमें समा गया / ' अन्यथा इतने बडे समुद्रका किसीके चुल्लूमें समा जाना सर्वथा असम्भव ही था। आप समुद्र से अधिक महत्त्व तथा गाम्भीर्य गुणसे युक्त हैं ] // 45 // संसारसिन्धानुबिम्बमत्र जागति जाने तथ वैरसेनिः। बिम्बानुषिम्बो हि विहाय धातुर्न जातु दृष्टातिसरूपसृष्टिः / / 46 / / संसारेति / किश्चात्रास्मिन् संसारसिन्धौ वैरसेनिः नलस्तवानुबिम्बं जागर्ति स्फुरतीति जाने तर्कयामीत्यर्थः / कुतः, हि तस्मादिम्बानुबिग्बो विहाय वर्जयित्वा धातुः अतिसरूपसष्टिः जातु कदाचिदपि न दृष्टा / अन्यथा कथमेतदत्यन्तसादृश्य. मित्यर्थः / भवान् नल एवेति मे प्रतिभातीति भावः // 46 // ___ 'इस संसाररूपी (निरवधि ) समुद्र में नल आपके प्रतिबिम्ब हैं। ऐसा मैं जानती हूँ, क्योंकि बिम्ब और अनुबिम्बको छोड़कर ब्रह्माकी अत्यन्त समान रूपवाली रचना कमी नहीं देखी गयी है / [ ब्रह्मा समान रूपवाली दो रचनाओं को कभी नहीं करते और आपकी भाकृति नल के अनुबिम्ब (प्रतिबिम्वित होनेवाली वस्तु) के समान है, मतएव प्रतिविम्बके