________________ अष्टमः सर्गः। 413 तस्मिन्नलोऽसाविति साऽन्वरज्यत् क्षणं क्षणं क्वेह स इत्युदास्त | 'पुरः स्म तस्यां वलतेऽस्य चित्तं दूत्यादनेनाथ पुनर्व्यवर्ति / / 5 / / तस्मिन्निति / सा भैमी तस्मिन् पुंसि असौ नल इति हंसादिमुखश्रतरूपसंवा. दाम्नल इति मत्वा क्षणं क्षणमल्पकालमत्यन्तसंयोगे द्वितीया। अन्वरज्यवनरक्ताs. भवत् / एतेन हर्षः सूचितः। पुरेस नलः केहेत्यसम्भावितमिति मत्वेत्यर्थः / इतिनैवो. तार्थवादप्रयोगः / क्षणमुदास्त उदासीना स्थिता / आसेः कर्तरि लङ्तङ। एतेन विषादः सूचितः, तथा चास्या भावसन्धिरासीदित्यर्थः / अथ नलस्य तस्यां भाव. सन्धिमाह-अस्य नलस्य चेतः पुरः प्रथमं तस्यां दमयन्त्यां वलते स्म चचालेति हषोंक्तिः। पुनः दूत्यादनेन का नलेन न्यवर्ति नीचकृत्ये स्थितस्य इदमनचितमिति बलात्कारेण निवर्तितमिति विषादोक्तिः, रागस्तु समग्ररूढ एवानयोरिति भावः // 5 // वह दमयन्ती उस ( नल ) में यह नल हैं यह मानकर अनुरक्त होती थी, वे यहां ( अन्तःपुर या इस नगरमें भी) कहां से या कैसे आ गये ? यह मानकर उदासीन हो जाती थी और उस नलका चित्त उस दमयन्तीमें पहले (पाठा०-बारबार) चञ्चल हो उठता था, किन्तु बादमें दूत होनेसे वे अपने चित्तवृत्तिको हटा ( रोक) लेते थे। [पहले तो दमयन्ती को हर्ष तथा बादमें नलके अन्तःपुरमें आनेकी सम्भावना न होनेसे दमयन्ती को तथा स्वयं देवों के दूत होनेसे दमयन्तीमें अनुराग करना अनुचित होनेसे नलको उदासीनता हो जाती थी। इस प्रकार पूर्व वचन ( श्लो० 4 के ) अनुसार दोनों में समान अनुराग व्यक्त किया गया है ] // 5 // २कयाचिदालोक्य नलं ललज्जे कयापि तद्भासि हुदा ममजे / तं कापि मेने स्मरमेव कन्या भेजे मनोभूवशभूयमन्या // 6 // अथ तत्सखीनामपि तदा शृङ्गारभावा बभूवुरित्याह-कयेति / कयाचित्कन्यया नलमालोक्य ललज्जे लज्जितं, भावे लिट / कयापि तद्भासि तलावण्ये हृदा ममज्जे हृदि तन्मयत्वं भावितमित्यर्थः / एतेन तत्प्राप्तिसङ्कल्पो गम्यते, भावे लिट। कापि कन्या तं नलं स्मरमेव मेने, इति विस्मयोक्तिः। अन्या कन्या मनोभुवो वशभूयं वशत्वं "भुवो भावे" इति क्यष / भेजे / एतेन औत्सुक्यं गम्यते // 6 // ___ नलको देखकर कोई ( पाठा०-कोई कुलीन ) सखी लज्जित हो गयी, कोई सखी उनके सौन्दर्य में हृदयसे मग्न हो गयी ( सौन्दर्यके देखने मात्रसे कामपराधीन होकर स्मरान्ध हो गयी), किसी सखीने उनको ( साक्षात् ) कामदेव ही माना और कोई सखी सर्वथा कामपरवश हो गयी // 6 // 1. "पुनः" इति पाठान्तरम् / 2. "तं वीचय काचिरकुलजा" इति पाठान्तरम् /