________________ 361 सप्तमः सर्गः। हारकी लाल कान्ति (पक्षा०-सीधे०-इन्द्रधनुष की शोभा) प्रकटित हो रही है। .[ दमयन्ती के स्वच्छतम मोतियोंके हार की श्वेत कान्ति तथा माणिक्य मणियों के हारकी लाल कान्ति स्तनों पर पड़ती है, वह श्वेतफेनयुक्त मेघमें सरल इन्द्रधनुषकी लालकान्ति-जैसी मालूम पड़ती है। 32 या किसीके मतसे 70 लड़ियोंकी मुक्तामालाको 'गुच्छ' कहते हैं ] // 76 // निःशसोचितपंकजोऽयमस्यामुदीतो मुखमिन्दुबिम्बः ! चित्रं तथापि स्तनकोकयुग्मं न स्तोकमप्यश्चति विप्रयोगम् // 7 // निःशङ्केति / निःशङ्कं यथा तथा सङ्कोचितानि मुकुलितानि पङ्कजानि येन सोऽयं मुखमेवेन्दुबिम्बोऽस्यां भैम्यामुदीत उदितस्तथापीन्दूदयेऽपि स्तनावेव कोको चक्रवाकी / 'कोकश्चक्रश्चक्रवाकः' इत्यमरः। तयोर्यग्मं स्तोकमल्पमपि विप्रयोग नाञ्चति न गच्छति चित्रं मुखेन्दूदयेऽपि कुचकोकयोरवियोग इति रूपकोत्थापितो विरोधाभास इति सङ्करः॥ 77 // __निःशङ्क होकर पद्मको संकुचित करनेवाला यह मुखरूप चन्द्रबिम्ब ( या चन्द्रबिम्ब रूप मुख ) इस दमयन्तीमें उदित हुआ है, तथापि स्तनरूप चक्रवाकमिथुन अर्थात चकवाचकई नामक पक्षी जोड़े भी विरह को नहीं प्राप्त कर रहे हैं अर्थात् दोनों स्तन सटे हुए हैं, यह आश्चर्य है / दमयन्तीका मुख साक्षात् चन्द्रमा हैं अत एव उसने [दिनमें कमलबन्धु सूर्यके रहनेसे चन्द्रमा सूर्यके भयसे कमलको संकुचित नहीं कर पाता; किन्तु दमयन्तीके मुखचन्द्र को तो सूर्यसे कोई भय है ही नहीं, अतः यह ( दमयन्ती मुखचन्द्र) निश्शत होकर स्तन रूप कमलको संकुचित करता है, अतएव दमयन्तीका स्तनद्वय कमलके कोरकके आकार वाला है / चन्द्रमाके उदय एवं कमलके संकुचित होनेपर रात्रि हो जाती है और उस समय चकवा-चकईका परस्परमें विरह रहता है...वे एक साथ नहीं रहते, किन्तु यहां चन्द्रके द्वारा कमलके संकुचित होनेपर भी स्तनद्वयरूप चकवा-चकईकी जोड़ी परस्परमें थोड़ा भी या थोड़े समय के लिये भी अलग नहीं है ( दोनों स्तन बड़े-बड़े होनेके कारण परस्परमें मिले हुए हैं, ) यह आश्चर्य है / अथवा-सूर्यसे डरा हुआ प्राकृत चन्द्रमा केवल रातमें ही कमलोंको संकुचित करता है, दिनमें नहीं, अतएव रात्रिका समय होनेसे चकवा-चकईका परस्परमें वियोग होना (अलग हो जाना) ठीक है; इस दमयन्ती का मुखचन्द्रमाने तो सूर्यसे निश्शक होकर दिनमें भी कमलका सङ्कोच कर दिया है, अत एव रात न होनेसे चकवाचकईरूप ( स्तनद्वय ) का थोड़ा भी वियोग नहीं है / ( दोनों स्तन थोड़ा भी अलग-अलग नहीं है ), किन्तु विशाल होनेके कारण परस्परमें मिले हुये हैं, यह आश्चर्य है ? अर्थात् कोई आश्चर्य नहीं है, इस प्रकार काकुद्वारा द्वितीयार्थकी सङ्गति होती है। दमयन्तीके स्तन कमलाकार एवं चक्रवाकाकार तथा बड़े-बड़े होनेसे परस्परमें मिले हुए हैं ] / / 77 // आभ्यां कुचाभ्यामिभकुम्भयोः श्रीरादीयतेऽसावनयोः क ताभ्याम् | भयेन गोपायितमौक्तिकौ तौ प्रव्यक्तमुक्ताभरणाविमौ यत् / / 78 / /