________________ 314 नैषधमहाकाव्यम् / क्षीणेनेति / इहास्यां भीमभुवि भैम्यां भयङ्करस्थाने च क्षीणेन कृशेन दुर्बलेन च मध्ये अवलग्ने प्रवलशत्रुमध्ये च सता वसतापि उदरेण त्रिवल्यधोभागेन अत एव वलिभ्यः त्रिवलिभ्यः / बवयोरभेदात् बलिभ्यो बलवद्भ्यश्च सकाशात् आक्रमणमभिन्याप्तिरभिभवश्च न प्राप्यते इति यत् तदनाक्रमणं चित्रं, बलिसमीपे दुर्ब. लस्यानाक्रमणं चित्रमित्यर्थः / किश्च सर्वेषामज्ञानां करचरणादीनां स्वाम्यमात्यादीनां च शुद्धौ सत्यामनङ्गस्य अङ्गहीनस्य कामस्य च राज्ये बिज़म्भितं तदिदमन्यचित्रमित्यर्थः / अत्र वाच्यप्रतीयमानयोरभेदाध्यवसायाद्विरोधाभासः // 81 // इस भीमकुमारी दमयन्तीमें ( पक्षा०-भयङ्कर भूमिमें ) क्षीण अर्थात् अत्यन्त कृश (पक्षा०-दुर्बल ) और बीचमें स्थित (पक्षा०-कटि = कमरमें स्थित) उदर अर्थात् त्रिवलिका अधोभागस्थ पेट जो त्रिवलियोंसे ( पक्षा०-तीन बलवान् पुरुषोंसे ) आक्रान्त अर्थात् पीडित नहीं होता है; यह आश्चर्य है / सम्पूर्ण हाथ-पैर आदि अङ्गोंके ( पक्षा०-अमात्य, मित्र आदि सात राज्यागों के ) शुद्ध अर्थात् निर्दोष रहने पर अनङ्ग (अङ्गहीन, पक्षा०-कामदेव ) के राज्यमें अर्थात युवावस्थामें विलसित हो रहा है यह दूसरा आश्चर्य है / [ भयंकर भूमिमें दुर्वलके निवास करते रहनेपर भी उसपर तीन बलवानों का आक्रमण नहीं करना आश्चर्य है / अथवा-जो सर्वाङ्ग शुद्ध है वह अनङ्ग (अङ्गरहित ) राज्य है यह आश्चर्य है; यहां विरोध है, उसका परिहार 'कामदेवका राज्य है' अर्थ द्वारा करना चाहिये / अथवा-जो राजा भीम की भूमि है अर्थ राजा भीमके निषध राज्यमें 'अनङ्ग' (अनगदेशसे भिन्न ) राज्य है यह आश्चर्व है ? अर्थात् कोई आश्चर्य नहीं है / अथवा-जो भीम अर्थात् शिवजीकी भूमि है अर्थात् जहां शिवजीका राज्य है वहां कामदेवका राज्य है, यह आश्चर्य है / अथवाभयंकर अर्थात् जङ्गल और पर्वत आदिसे बीहड़ भूमिमें रहनेवाले दुर्बलपर बलवान् का आक्र. मण नहीं करना आश्चर्य है अर्थात कोई आश्चर्य नहीं है, क्योंकि वैसे बीहड़ स्थानमें रहनेवाला व्यक्ति वहां के सभी स्थानोंसे परिचित हवं भागने, दौड़ने में अभ्यस्त हो जाता है, अत एव वहां पर बलवान् भी बाहरी व्यक्ति आक्रमणकर सफल नहीं होता। अभी दमयन्तीकी नयी तरुणावस्था होनेसे त्रिवलियों में सक्ष्म रेखामात्र हैं, वे पेटपर लटक नहीं गयी हैं। हाथपैर आदि सम्पूर्ण अङ्ग सुडौल एवं हृष्ट-पुष्ट हैं और उनमें कामदेव का साम्राज्य हो रहा है ] // मध्यं तनूकृत्य यदीदमीयं वेधा न दण्यात् कमनीयमंशम / केन स्तनौ संप्रति यौवनेऽस्याः मृजेदनन्यप्रतिमाङ्गदीप्तेः // 82 // मध्यमिति / वेधा इदमीयमेतदीयं मध्यमवलग्नं तनुकृत्य निर्माणकाले हास. यित्वा कमनीयमंशमुद्धृतं भागं न दध्यात् यदि कचिन्न स्थापयेद्यदि, संप्रति यौवने अनन्यप्रतिमाऽनन्योपमाङ्गदीप्तिर्यस्यास्तस्याः भैग्याः स्तनौ केन सृजेत् ? नूनमुदरोतसारेण अस्याः स्तनौ निर्मितवानित्युत्प्रेक्षा // 2 // यदि ब्रह्मा इस दमयन्तीकी कटिको पतली करके सुन्दर भागको ( कहीं पर सुरक्षित )