________________ नैषधमहाकाव्यम् / वालेकी समता नहीं कर सकता है; क्योंकि उनमें परस्परमें बहुत अन्तर है / दमयन्तीके दोनों स्तन तालके समान बड़े हैं तथा ऊपरको उठे हुए अर्थात् उन्नत हैं ] // 74 // एतत्कुनस्पधितया घटस्य ख्यातस्य शाखेषु निदशेनत्वम् / तस्माच्च शिल्पान्माणकादिकारी प्रसिद्धनामानि कुम्भकारः / / 5 / / एतदिति // एतत्कुचस्पर्धितया स्यातस्य लोके प्रसिद्धस्य घटस्य कुम्भस्य शास्त्रेषु निदर्शनत्वं तत्र तत्र दृष्टान्तत्वमजनि / किन मणिकादिकारी अलिअरादिमहाभाण्डनिर्माता कुलालः 'अलिअरः स्यान्मणिकः' इत्यमरः / तस्मादेव शिल्पात् घटनिर्माणात् कुम्भकार इत्येव प्रसिद्धनामाजनि / महत्संसर्ग इव तत्सहर्षोऽपि च्यातिकर इति भावः // 75 // इस दमयन्तीके स्तनोंका स्पी होनेसे प्रसिद्ध घड़ा शास्त्रोंमें दृष्टान्त बन गया (यथा" जो कृत्रिम है वह अनित्य है, जैसे-घड़ा" इस प्रकार अन्य वस्तुओंको छोड़कर केवल घड़ेका ही दृष्टान्त दिया जाता है (प्रसिद्धके साथ स्पर्धा करनेवाला अप्रसिद्ध भी प्रसिद्ध है। जाता है ) / और कुण्डा, कमोरा आदि बनाने वाला कुलाल दमयन्ती कुचदयस्पद्धी उर्स कारीगरी अर्थात् घड़ा बनानेसे ही 'कुम्भकार' अर्थात् कुम्हार नामसे प्रसिद्ध हो गया। [ यद्यपि कुलाल अर्थात् कुम्हार कुण्डा, मांड आदि बड़े, बड़े एवं कसोरा, पुरवा, दिआ, दिअरी आदि छोटे-छोटे भी बर्तनोंको बनाता है, किन्तु दमयन्तीके स्तनद्वयकी स्पर्धा करनेवाले घड़ोंको बचानेके कारण ही उसका 'कुम्भकार' नाम पड़ा है ] // 75 / / गुच्छालयस्वच्छतमोदबिन्दुवृन्दाममुक्ताफलफेनिलाङ्के। माणिक्यहारस्य विदर्भसुभ्रूपयोधरे रोहति रोहितश्रीः / / 76 // 'गुच्छेति ।माणिक्यमयस्य हारस्य रोहितश्रीः लोहिता कान्तिः विदभ्रसुभ्रपयोधरे भैमीकुचे रोहन्ति प्रादुर्भवन्ति / किम्भूते-गुच्छो हारविशेष आलय आश्रयो येषां तानि स्वच्छतमानि निर्मलतरा (मा) णि उदबिन्दुवृन्दवज्ज्लबिन्दुसमूहवदाभा येषां तानि मुक्ताफलानि तैः फेनिलः फेनयुक्त इव उज्वलतरोऽको मध्यो यस्य / मुक्ताहारमाणिक्यहाराभ्यां भैमीकुचौ शोभेते इति भावः / अथ च पयोधरे मेघे रोहितश्रीः ऋजुशक्रधनुःशोभा प्रादुर्भवतीत्युक्तिः / 'हारभेदा यष्टिभेदाद् गुच्छगुच्छार्द्धगोस्तनाः' 'इन्द्रायुधं शक्रधनुस्तदेव ऋजुरोहितम्' 'रोहिते लोहितो रक्तः' इत्यमरः / फेनिलः, मत्वर्थे 'फेनादिलच्च' इतीलच // 76 // / ___ 'गुच्छ' नामक हार के अत्यन्त निर्मल जलबिन्दु समूहके समान मोतियोंसे मानों फेनयुक्त, सुन्दर भ्र वाली विदर्भराजकुमारी दमयन्तीके स्तनपर ( पक्षा०-मेघमें ) माणिक्योंके 1. 'जीवातु' व्याख्याऽनुपलब्धरत्र 'नारायण' भट्टकृता 'प्रकाश' व्याख्येव मयोपयुक्ततया प्रकाशितेत्यवधेयं पाठकैरिति /