________________ षष्ठः सगः। 320 (गोटी-सतरंज आदिका मोहरा) को मारो, ऐसा शतरंज आदिके खेलनेमें किसी सखीके कहनेपर नल अपने मारे जानेके भ्रमसे डरनेवाली मैनाके दीनयुक्त वचन ( मुझे मत मारो,......) से साभिप्राय हँसने लगे / [ यद्यपि सखीने खेलमें मोहरेको मारनेके लिये कहा, किन्तु 'सारी' शब्दके समानार्थक होनेसे उसे अपने मारे जानेको कहा गया मानकर डरसे मैना 'मुझे मत मारो' आदि दीन वचन कहने लगी, वह सुन नलको हंसी आ गयी कि मोहरेको मारनेके कहनेपर भी यह मैना अपने मारे जानेकी शङ्कामें ऐसा दोन वचन कह रही है ] सभामें सखियां शतरंज आदि खेल रही थीं ] // 71 / / भमीसमापे स निरीक्ष्य यत्र ताम्बूलजाम्बूनदहंसलक्ष्मीम् / कृतप्रियादूत्यमहोपकारमरालमोहद्रढिमानमूहे / / 72 / / भैमीति / यत्र सभायां, नलो भैमीसमीपे ताम्बूलस्य जाम्बूनदहंसो हिरण्मय. हंसाकारः करकः तस्य लक्ष्मी निरीक्ष्य, कृतः प्रियाया भैम्या दूत्यमेव महोपकारो येन तस्मिन् मराले हंसे, मोहस्य भ्रमस्य द्रढिमानं दार्थम् ‘र ऋतो हलादेलंघो' रित्यकारस्य रभावः / ऊहे उठवान् / वहेः कर्तरि लिट् / “वचिस्वपि" इत्यादिना सम्प्रसारणम् // 72 // जिस दमयन्ती-सभामें वह नल दमयन्तीके पास में रखे हुए हंसाकार पानदानकी शोभाको देखकर प्रियाके यहाँ दूत-कर्म रूप महान उपकार करनेवाले इंसके अतिशय भ्रमसे ('प्रिया दमयन्तीके पास हमारा दूतकर्म करनेवाला यही हंस है क्या ? इस भ्रमसे) युक्त हो गये ! [हंसाकार वह पानदान ऐसा उत्तम बना था कि उसे देखकर नल-से चतुर व्यक्तिको भी सजीव हंसका भ्रम हो गया ] // 72 // तस्मिनियं सेति सखीममाजे नलस्य सन्देहमथ व्युदस्यन्'। अपृष्ट एव स्फुटमाचचक्षे स कोऽपि रूपातिशयः स्वयं ताम् // 73 // - तस्मिन्निति / अथ सभावलोकनानन्तरं तस्मिन् सखीसमाजे नलस्य सन्देहं का वात्र भैमीति संशयं व्युदस्यन् , स प्रसिद्धः कोऽपि रूपातिशयः सौन्दर्यविशेषः। स्वयमपृष्ट एव तां भैमी, सा भैमी इयमिति स्फुटमाचक्षे / आचख्यो / विश्वातिशा. यिसौन्दर्यसाक्षात्कारादियं दमयन्तीति निश्चिकायेत्यर्थः // 73 // ____ इस ( सभाको देखने ) के बाद उस सखी-समूहमें नलके ( 'इनमें कौन-सी दमयन्ती है, इस प्रकारके ) सन्देहको 'यह वही दमयन्ती है' इस प्रकार दूर करता हुआ उसी सौन्दयाधिक्यने बिना पूछे ही उस दमयन्तीको स्वयं ही कह दिया / [ पहले एकसे एक सुन्दरी सखियोंको देखकर नल 'इनमें कौन दमयन्ती हैं' यह निर्णय नहीं कर सके थे, किन्तु जब सभामें दमयन्ती आई तब उसके अतिशय सौन्दर्यको देखकर बिना पूछे ही नलने निश्चय कर लिया कि यही 'दमयन्ती' है ] // 73 / / 1. "ब्युदस्य" इति पाठान्तरम् / 2. "एवं" इति पाठान्तरम् / 210