________________ 374 नैषधमहाकाव्यम् / अन्तिम सीमाको इसके वचनमें समाप्त कर दिया। [शिरीषपुष्प अत्यधिक सुकुमार ( कोमल ) होता है-जैसा कविकुलदिवाकर कालिदासने भी पार्वतीका वर्णन करते हुए कुमारसम्भवमें कहा है-"शिरीषपुष्पाधिकसौकुमार्यों बाहू तदीयाविति में वितर्कः / (1 / 41)" / तो कालिकामें स्वभावतः अधिक सुकुमारता होना सिद्ध है / ब्रह्माने दमयन्ती के अङ्गोंको शिरीषपुष्पकलिकासे भी अधिक सुकुमार बनाया, अतः सुकुमार पदार्थोकी रचनामें ख्याति पाकर उन्होंने दमयन्तीके वचनमें सुकुमारताकी समाप्ति कर दी अर्थात् दमयन्तीके वचनसे अधिक सुकुमारता ( मृदुता) अन्यत्र कहीं नहीं हो सकती, सुकुमारता की चरमसीमा दमयन्तीका वचन ही है, यह निश्चय कर दिया। दमयन्ती का वचन अत्यन्त मृदु है // 47 / / प्रसूनबाणाद्वयवादिनी सा कापि द्विजेनोपनिषत्पिकेन / अस्याः किमास्यद्विजराजतो वा नाधीयते मैक्षभुजा तरुभ्यः / / 48 // __नन्वितोऽपि मदुरा कोकिलवाणी, नेत्याह-प्रसुनेति / प्रसूनबाणमेवाद्वयमद्वितीयं वस्तु तद्वदतीति तत्प्रतिपादिका कापि उपनिषत् पिकवाग्रपा सा तरुभ्यः सकाशात् / भिक्षाणां समूहो भैतम् / 'भैक्षं भिक्षा कदम्बकम्' इत्यमरः। 'भिक्षा. दिभ्योऽण'। तदभुजा तगोजिना ब्रह्मचारिणो भिक्षाशित्वस्मरणादिति भावः / पिकेन पिकाख्येन द्विजेन पक्षिणा विप्रेण च, अस्या भैम्या आस्यमेव द्विजराजश्चन्द्रो ब्राह्मणोत्तमश्च / ततस्तास्मानाधीयते वा किम् ? अधीयत एवेत्यर्थः / अस्यामेवाधिक्योपलम्भादिति भावः / उत्प्रेक्षा // 48 // ( आम आदि ) वृक्षोंसे मिक्षा-समूहको खानेवाली अर्थात् आममञ्जरीरूप भिक्षा समूह को खानेवाली पक्षी कोयल इस दमयन्तीके मुखरूपी चन्द्रमासे कामदेव रूप अद्वैतका प्रतिपादन करनेवाली उपनिषत् विद्या अर्थात् तद्रूप दमयन्तीकी मधुरवाणीको नहीं पढ़ती है क्या ? अर्थात् पढ़ती ही है। पक्षा०-वृक्ष (रूप गृहाश्रमियोंसे माँगकर) भिक्षात्रको खानेवाला ब्राह्मण ( दमयन्तीके मुखरूप ) श्रेष्ठ ब्राह्मणसे (कामदेवरूप ) अद्वैत ब्रह्मका प्रतिपादन करनेवाली उपनिषद् विद्याको नहीं पढ़ता है क्या ? अर्थात् अवश्य पढ़ता है। [जिस प्रकार ब्रह्मचर्यावस्थामें रहता हुआ एवं गृहाश्रमियोंके यहां मांगकर भिक्षान्नको खाता हुआ ब्राह्मणश्रेष्ठ ब्राह्मण ( आचार्य) के पास जाकर अद्वैत ब्रह्म का प्रतिपादन करनेवाली उपनिषद्को पढ़ता है, उसी प्रकार कोयल भी आमके वृक्षोंसे भिक्षान्नरूपमें प्राप्त मारियों को खाकर एकमात्र कामका प्रतिपादन करनेवाली विद्या ( कामविद्या) को इससे मुखचन्द्रसे पढ़ती है अर्थात् इस दमयन्तीकी मधुरवाणीको सीखती है। दमयन्तीको वाणी कोकिलकी वाणीसे भी मधुर है ] // 48 // पद्मासद्मानमवेक्ष्य लक्ष्मीमेकस्य विष्णोः श्रयणात्सपत्नीम। मास्येन्दुमस्या भजते जिताजं सरस्वती तद्विजिगीषया किम् // 46 // पद्माङ्केति / सरस्वती वाग्देवता एकस्य विष्णोः पत्युरिति शेषः / श्रयणादा.