________________ सप्तमः सर्गः। पक्षपातवाले व्यक्तिका जीतना अति सरल होता है // दमयन्तीके केश-समूहमें भी पुष्ष तथा रत्नजटित चन्द्राकार भूषण (क्लिप..... ) लगे रहनेसे वह मयूरपंखसे भी अधिक शोभित हो रहा हैं ] 20 // अस्या यदास्येन पुरस्तिरश्च तिरस्कृतं शीतरुचान्धकारम् / स्फुटस्फुरद्वङ्गकचच्छलेन तदेव पश्चादिदमस्ति बद्धम् // 21 // अस्या इति / अस्या भैम्याः आस्येनैव शीतरुचा मुखचन्द्रेण यदन्धक्रारं तमः / 'अन्धकारोऽस्त्रियां ध्वान्तम्' इत्यमरः / पुरो अग्रे तिरश्च पाश्वयोश्च तिरस्कृतं तदन्धकारमेवेदं स्फुटं स्फुरन् भङ्गः कौटिल्यं पराजयश्च येषां तेषां कचानां छलेन पश्चादद्धमस्तीत्युत्प्रेक्षा। तिरस्कृतो हि भग्नोस्साहः कचित्पृष्टभागे बद्धस्तिष्ठतीति भावः। इस दमयन्तीके मुख चन्द्रने सामने तथा तिर्छ या पाश्र्थो में जो अन्धकारको हटाया ( पक्षा०-पराजित किया ), वह अन्धकार ही स्फुरित होते हुए टेढ़े ( पक्षा०-पराजित ) केशों के बहानेसे मानो पीछे ( मुखके पीछेके भागमें, पक्षा०-हाथ पीछे करके अर्थात् मुश्क चढ़ाकर ) बँधा हुआ है / [ लोकमें भी पराजित ब्यक्तिके हाथोंको पीठके पीछे करके बाँध देते हैं, वैसे ही मुखसे पराजित अन्धकाररूप केश पीछे चोटी रूपमें बँधे हुए हैं। दमयन्ती के केश कुटिल तथा अत्यन्त काले हैं ] // 21 // अस्याः कचानां शिखिनश्व किन्नु विधि कलापौ विमतेरगाताम् / तेनायमेभिः किमपूजि पुष्पैरभत्सि दत्त्वा स किमधेचन्द्रम् / / 22 / / अस्या इति / अस्या भैम्याः कचानां केशानां शिखिनां बर्हिणश्च कालापौ केशपाशबहभारौ / 'कलापो भूषणे बर्हे तूणीरे सहते कच' इत्यमरः। विमतेमियो विवादाद्विधिमगातां स्वतारतम्यं प्रष्टुमगमतां किं नु। "इणो गा लुकि" इति गादेशः / तेन विधिना अयं केशपाशः एभिः पुष्पैरिति हस्तेन पुरोवर्तिनिर्देशः अपूजि किम् / महतः पूज्यत्वादिति भावः / स शिखिकलापः अर्धचन्द्रं चन्द्रकं गलहस्तं च दत्वा अभर्सि भर्तितः किं महाजनद्वेषिणो नीचस्य शास्यत्वादिति भावः। अर्धचन्द्रस्तु 'चन्द्रके गलहस्ते बाणभेदः' इति विश्वः / शिखिकलापस्य चन्द्रकवत्वं केशपाशस्य तत्कुसुमं ब्रह्मदत्तं शाश्वतमिति भावः / अत्रोत्तरोत्प्रेक्षयोः प्रथमोत्प्रेक्षासापेक्षत्वात् सजातीयसङ्करः // 22 // इस दमयन्तीके केशों के साथ विरोध होने के कारण मयूरके पंख ब्रह्माके पास (निर्णयके लिये) गये थे क्या ? (जो ) उस ( ब्रह्मा ) ने इस केशसमूहकी इन ( दमयन्तीके केशसमूहमें गूथे हुए ) पुष्पोंसे पूजाकी तथा उस (मयूरके पंख) को अर्द्धचन्द्र, (गर्दनिया पक्षा०-अर्द्ध चन्द्राकार चिह्न ) देकर बाहर निकाल दिया क्या ? / [ उत्तम तथा अधम गुणके ज्ञाता मध्यस्थ ब्रह्माने श्रेष्ठ गुणवाले दमयन्तीके केश-समूहके साथ स्पर्धा करनेवाले अधम गुणवाले मयूर-पक्षोंको देखकर श्रेष्ठ गुणवाले दमयन्ती केश-समूह की तो पुष्पोंसे पूजा की तथा अधम गुणवाले मयूर-पंखों को अर्द्धचन्द्र देकर बाहर निकाल दिया / लोकमें